महाकुंभ नगर । सनातन संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीन जीवंत संस्कृति के रूप में जाना जाता है। सनातन संस्कृति के प्राचीनतम नगरों में तीर्थराज प्रयागराज का स्थान सर्वोपरि है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रयागराज सनातन संस्कृति के सभी पवित्र तीर्थों के राजा हैं, सप्तपुरियों को इनकी रानी माना गया है। प्रयागराज को तीर्थराज मानने का प्रमुख कारण यहां पवित्रतम मां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होना और स्वयं सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का प्रथम यज्ञ करना माना जाता है।
इस प्राकृष्ट यज्ञ के कारण ही त्रिवेणी संगम का यह क्षेत्र प्रयाग के नाम से जाना जाता है।पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने गंगा तट पर स्वयं शिवलिंग की स्थापना कर दस अश्वमेध यज्ञ किये थे।
तब से ही गंगा जी का ये घाट दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है, यहां दशाश्वमेध मंदिर में ब्रह्मेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से तत्क्षण फल की प्राप्ति होती है। मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने भी यहां दशाश्वमेध यज्ञ किया था।
सृष्टि का प्रथम दशाश्वमेध यज्ञ
प्रयागराज की प्राचीनता और महात्म का पता वेद और पुराणों में प्रयागराज की कथाओं के वर्णन से चलता है। प्रयागराज का वर्णन सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद में चंद्रवंशी राजा इला की राजधानी के रूप में मिलता है।
प्रयाग क्षेत्र की महिमा का गान रामयाण, महाभारत से लेकर पद्मपुराण, स्कंध पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और कई महान शासकों की गाथाओं में मिलता है। पद्मपुराण की कथा के अनुसार सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण के बाद गंगा तट पर सृष्टि का प्रथम यज्ञ किया था। सृष्टि की प्रथम यज्ञस्थली होने के कारण गंगा का यह पुण्य क्षेत्र प्रयाग कहलाया।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने गंगा तट पर दश अश्वमेध यज्ञ किये थे। इस कारण गंगा जी यह घाट दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है। इस तट पर स्वंय ब्रह्म जी ने ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी।
पद्म पुराण की कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद गंगा के तट पर ऋत्विज के तौर वैदिक मंत्रों से दश अश्वमेध यज्ञ किये।
इस यज्ञ में स्वयं भगवान विष्णु यजमान थे तथा यज्ञ की हवि भगवान शिव को अर्पित की जा रही थी। यज्ञ की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के माधव रूप से बारह माधव उत्पन्न हुए। जो पूरे यज्ञ क्षेत्र के चारों ओर द्वादशमाधव के रूप में स्थापित हैं। सृष्टि के इस प्रथम, प्राकृष्ट यज्ञ के कारण ही यह क्षेत्र प्रयाग के नाम से जाना गया। सनातन आस्था का प्रथम तीर्थ होने के कारण ही प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया।
ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित हैं ब्रह्मेश्वर महादेव
गंगा जी के इसी तट पर ब्रह्मा जी ने ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना कर पूजन-अर्चन किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन-पूजन से तात्कालिक फल की प्राप्ति होती है। यह शिवलिंग आज भी प्रयागराज के दारगंज में दशाश्वमेध मंदिर में स्थापित है।
दशाश्वमेध मंदिर के पुजारी विमल गिरी ने बताया कि यह देश का एकमात्र शिव मंदिर है जहां एक साथ दो शिवलिंगों का पूजन होता है। उन्होंने बताया कि मुगल आक्रान्ता औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया था। जनश्रुति के अनुसार उसकी तलवार के प्रहार से शिवलिंग से एक साथ दूध और रक्त की धार निकलने लगी थी। इसे देखकर वो हतप्रभ हो गया और मंदिर कोई नुकसान पंहुचाए बिना वापस लौट गया।
शिवलिंग के खण्डित हो जाने के कारण मंदिर में दशाश्वेवर शिवलिंग की भी स्थापना की गई। लेकिन ब्रह्मा जी द्वारा स्वयं स्थापित किये जाने की मान्यता और ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की चमत्कारिक शक्ति के कारण उन्हें मंदिर से हटाया नहीं गया। तब से दसाश्वमेध मंदिर में एक साथ दो शिवलिंगों का पूजन होता है।
श्रावण मास में पूजन का है विशेष महत्व
मंदिर के पुजारी विमल गिरी ने बताया श्रावण मास में शिवलिंग के पूजन का विशेष महत्व है। काशी विश्वनाथ को श्रावण मास में जलाभिषेक करने वाले कांवणियें दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर ब्रह्मेश्वर शिव का पूजन करके ही काशी कांवड़ ले जाते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से तत्क्षण फल की प्राप्ति होती है। सृष्टि की प्रथम यज्ञ स्थली होने के कारण यहां किए गये यज्ञ और तप भी शीघ्र फलदायी होते हैं। उन्होंने बताया कि महाभारत की कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने भी यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये थे और महाभारत में विजय प्राप्त की थी।
ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से ब्रह्मलोक की प्राप्ति
स्थानीय लोगों के अनुसार प्राचीन काल में दशाश्वमेध घाट पर ब्रह्म कुण्ड भी था, जो समय के साथ-साथ विलुप्त हो गया है। मान्यता है कि इस कुण्ड का निर्माण भी ब्रह्मा जी ने किया था, जिसके जल से शिव जी का अभिषेक करने से व्यक्ति त्रिविधिक तापों से मुक्ति हो जाता था। प्रयाग क्षेत्र में मुण्डन और केशदान करना पुण्य फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि प्रयाग में गंगा स्नान के बाद ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से मृत्यु के बाद ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
सीएम योगी के प्रयासों से हुआ है दशाश्वमेध मंदिर और घाट का कायाकल्प
पौराणिक मान्यता, महत्ता और सनातन आस्था के प्रति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भावना के अनुरूप महाकुम्भ 2025 में प्रयागराज के दशाश्वमेध मंदिर और घाट का विशेष तौर पर जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा है। पर्यटन विभाग ने न केवल रेड सैण्ड स्टोन से मंदिर और घाट का जीर्णोधार कार्य कराया है। साथ ही नक्काशी, चित्रकारी और लाईंटिग के जरिये मंदिर का सौंदर्यीकरण भी किया गया है।
महाकुम्भ में प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु मनोकामनापूर्ति के लिए दशाश्वमेध मंदिर में सुगम दर्शन और पूजन कर सकेंगे। स्थानीय लोगों का कहना है सीएम योगी के पहले कि किसी भी सरकार ने मंदिर के जीर्णोधार की कोई सुध नहीं ली थी। वर्तमान में दशाश्वमेध मंदिर और घाट ने अपने प्राचीन कालीन वैभव को पुनः प्राप्त किया है।