पीलीभीत: 33 साल बाद एक बार फिर पीलीभीत जिला खालिस्तानी आतंकवादियों का कब्रगाह बन गया। सोमवार तड़के हुई मुठभेड़ में पुलिस ने पंजाब के तीन खतरनाक आतंकवादियों को ढेर कर दिया।
इस घटना के बाद से पूरे जिले में सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। उत्तराखंड और नेपाल सीमाओं पर निगरानी बढ़ा दी गई है। वाहनों की सघन चेकिंग के साथ संदिग्ध गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।
1991 में पीलीभीत बना था आतंकियों का अंतस्थल
12-13 जुलाई 1991 को पीलीभीत के जंगलों में हुई तीन अलग-अलग मुठभेड़ों में पुलिस ने खालिस्तानी लिबरेशन आर्मी और खालिस्तान कमांडो फोर्स के 10 खतरनाक आतंकवादियों को मार गिराया था। इनमें स्वयंभू कमांडर बलजीत सिंह “पप्पू” और लेफ्टिनेंट कमांडर जसवंत सिंह शामिल थे।
पुलिस ने तराई क्षेत्र के जंगलों को सील कर आतंकियों को आत्मसमर्पण करने का मौका दिया, लेकिन फायरिंग शुरू होने पर जवाबी कार्रवाई में चार आतंकवादी मारे गए। बचे आतंकियों का पीछा करते हुए पुलिस ने दो और जगहों पर मुठभेड़ की और बाकी के आतंकियों को भी ढेर कर दिया।
हाई अलर्ट पर जिला
सोमवार की मुठभेड़ के बाद अमरिया के रामलीला मैदान, हरिद्वार हाईवे और उत्तराखंड बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। खुफिया एजेंसियां नेपाल सीमा पर सतर्कता बरत रही हैं। संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान के लिए गहन जांच अभियान चल रहा है।
1990 के दशक में आतंक का गढ़
तराई क्षेत्र, विशेषकर पीलीभीत, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी, 1990 के दशक में आतंकियों के सुरक्षित ठिकाने रहे। इस दौरान आतंकवादियों ने कई निर्दोष लोगों की हत्या की। दिसंबर 1991 में हजारा थाना क्षेत्र में बारूदी सुरंग के जरिए पीएसी का ट्रक उड़ाया गया था, जिसमें थानाध्यक्ष समेत तीन जवान बलिदान हुए।
खुफिया एजेंसियों का बड़ा कदम
जिले में सुरक्षा एजेंसियां संभावित खतरों को देखते हुए सतर्क हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों और जंगलों में विशेष निगरानी की जा रही है। स्थानीय सूत्रों की मदद से संदिग्ध गतिविधियों की जांच तेज कर दी गई है।
33 साल बाद एक बार फिर पीलीभीत ने दिखा दिया कि यह जिला आतंकियों के लिए कब्रगाह से कम नहीं है। पुलिस और सुरक्षा बलों की सतर्कता ने यह संदेश दे दिया है कि आतंकवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।