जम्मू। जम्मू-कश्मीर एक संवेदनशील व अशांत रहने वाला प्रदेश है। इस वर्ष भी सुरक्षाबलों ने आतंकियों घटनाओं का सामना करते हुए कई आतंकियों को मार गिराया है। सुरक्षाबलों ने वर्ष 2016 में अब तक 144 आतंकियों को मार गिराया है।
इनमें से 109 की पहचान नहीं हो पाई है। सबसे ज्यादा अज्ञात आतंकी एलओसी से सटे जिला कुपवाड़ा में ही मारे गए हैं।
इस वर्ष जनवरी की शुरुआत में ही कुपवाड़ा जिले के लोलाब कस्बे के लोहार मुहल्ले में सुरक्षाबलों ने तीन अज्ञात आतंकियों को मार गिराया था।
अगले माह फरवरी में हाजिन बांडीपोर के खोसा मुहल्ले में और मरसरी चौकीबुल कुपवाड़ा के अलावा ईडीआइ परिसर पांपोर में तीन मुठभेड़ों में 11 आतंकियों को मार गिराया। मारे गए इन 11 आतंकियों की भी पहचान नहीं हो पाई।
मार्च में दो मुठभेड़ें हुई, एक गांदरबल के हडूरा गांव और दूसरी जिला कुपवाड़ा के बट मुहल्ला हंदवाड़ा में, दोनों मुठभेड़ों में तीन विदेशी आतंकी मारे गए लेकिन वह कौन थे। यह आज तक मालूम नहीं हो पाया है।
पांच विदेशी आतंकियों को अप्रैल में सेना के जवानों ने कुपवाड़ा के लालपोरा और पतुशाही इलाके में मार गिराया, इनके नाम भी मालूम नहीं हो सके।
मई में सुरक्षाबलों ने कुपवाड़ा के जुनरेशी चौकीबल और नौगाम, बारामुला के चक द्रगमुला व श्रीनगर शहर के सराईबाला इलाके में चार मुठभेड़ों में 11 आतंकियों को मार गिराया।
जून के दौरान कुपवाड़ा के टंगडार, द्रगमुला, वडरबाला, पुलवामा के पांपोर और उड़ी में सुरक्षाबलों ने 16 आतंकी अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे जबकि जुलाई में नौ विदेशी आतंकी मारे गए। इनकी भी पहचान नहीं हो पाई।
मिली जानकारी के अनुसार अगस्त और सितंबर के दौरान 24 विदेशी आतंकी मारे गए। इनमें से अधिकांश कुपवाड़ा के सीमावर्ती इलाकों में ही घुसपैठ का प्रयास करते हुए सुरक्षाबलों की गोलियों का शिकार हुए।
इनके भी नाम पते का कोई सुराग नहीं मिला है। गत अक्टूबर में नौ और बीते नवंबर के दौरान 15 विदेशी आतंकी मारे गए, लेकिन किसी की भी पहचान नहीं हो पाई है।
राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मारे जाने वाले सभी अज्ञात और विदेशी आतंकियों की पहचान के लिए उनके शवों की तस्वीरें, उनके डीएनए व खून के नमूने जमा किए जाते हैं।
अगर कोई दावा करे कि मुठभेड़ में मारा गया आतंकी उसका रिश्तेदार था तो जमा किए गए नमूनों के आधार पर उसकी पहचान को यकीनी बनाया जाता है, लेकिन इस साल अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।
इसके अलावा कश्मीर घाटी में एक नया प्रचलन चल पड़ा है। स्थानीय लोगों द्वारा आतंकियों को पनाहगाह देने के साथ सुरक्षाबलों द्वारा घिरे जाने के बाद उन्हें सुरक्षित भाग निकलने के लिए सुरक्षाबलों पर पथराव व विरोध प्रदर्शन शुरू करना।
वर्ष 2016 में ऐसे कई मामले सामने आए जब सुरक्षाबलों ने आतंकियों की धरपकड़ के लिए उनकी घेराबंदी की परन्तु स्थानीय लोगों द्वारा सुरक्षाबलों पर किए गए पथराव व विरोध प्रदर्शन के दौरान आतंकी भाग निकलने में कामयाब रहे।