मनीष शुक्ल
लखनऊ। समाजवादी कुनबे में जारी कलह के बीच सुलह की कोशिशें दो लोगों की कुर्बानी पर आकर अटक गई हैं। मुलायम और अखिलेश गुट दोनों ही सुलह के फार्मूले पर राजी तो हैं लेकिन बात रामगोपाल और अमर सिंह की कुर्बानी पर अटक गई है। अखिलेश गुट पहले ही अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुका है।
अब मुलायम गुट हर हाल में रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर देखना चाहता है जिसके बाद ही सपा में एकजुटता का ऐलान होगा। हालांकि मुलायम सिंह यादव के दिल्ली जाने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी विधायकों की बैठक में उम्मीदवारों की नए सिरे से सूची जारी करने का ऐलान कर दिया है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सीएम अखिलेश यादव सूची जारी कर चुनाव प्रचार में जुट जाएंगे।
सपा में चल रहे पारिवारिक सियासी घमासान की गूंज गुरुवार को लखनऊ से दिल्ली तक सुनाई दी। अखिलेश और मुलायम गुटआपसी सुलह की कोशिशों के बीच एकबार फिर पार्टी सिंबल पर एकाधिकार के लिए रणनीति बनाते नजर आए। बीते दिन रामगोपाल यादव ने निर्वाचन आयोग को कुछ अहम दस्तावेज सौंपे हैं जिससे साइकिल सिंबल पर अपना दावा पुख्ता किया जा सके।
इसके जवाब में गुरुवार को बातचीत के बीच ही मुलायम और शिवपाल दोनों दिल्ली पहुंच गए और अपने समर्थकों के साथ सिंबल पर कब्जे के लिए कानूनी रास्ता निकालने में जुट गए। आजम खान की पहल के बाद मुलायम और अखिलेश गुट में बातचीत तो जारी रही लेकिन दोनों ही पक्ष इस पूरे एपिसोड में मुख्य दो किरदारों को पार्टी में अब किसी भी सूरत में नहीं चाहते हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सपा के दोनों गुटों को नोटिस भेजकर समर्थन पर हलफनामा दायर करने को कहा है। इसके बाद गुरुवार को सीएम अखिलेश यादव ने समर्थक विधायकों और मंत्रियों के साथ लखनऊ में बैठक की। अखिलेश ने समर्थकों से चुनाव में उतरने को कहा और बताया कि पार्टी सिंबल का मामला वे देख लेंगे। अखिलेश के समर्थन में 206 विधायकों से समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर कराया गया।
मुलायम गुट भी इस बीच तेजी से सक्रिय होकर लखनऊ से उठकर दिल्ली चला गया। दिल्ली में मुलायम आवास पर काफी गहन मंथन हुआ जिसमें फिलहाल सिंबल को दूसरे गुट के हाथों में जाने से रोकने के लिए कानून का सहारा लेने का फैसला किया गया। भले ही अखिलेश यादव को पार्टी के ज्यादातर समर्थकों की मौजूदगी में राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया हो लेकिन मुलायम सिंह को बर्खास्त न किए जाने से वह आज भी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। नौ जनवरी को चुनाव आयोग के सामने मुलायम गुट इसी आधार पर सिंबल की मांग करने जाएगा।
दूसरी ओर मुलायम गुट पार्टी में अखिलेश यादव के वर्चस्व को स्वीकार तो कर रहा है लेकिन पूरे घमासान का मुख्य विलेन रामगोपाल यादव को मान रहा है। शिवपाल और अमर सिंह का मानना है कि रामगोपाल न होते तो अखिलेश इतना बड़ा फैसला नहीं लेते। यह गुट अब किसी भी कीमत पर रामगोपाल को पार्टी के सदस्य के रूप में देखने को तैयार नहीं है। यही वजह मानी जा रही है कि इस बार वरिष्ठ मंत्री आजम खान भी दोनों पक्षों को राजी करने में नाकाम हो गए हैं।
आजम खान ने दोनों पक्षों से थोड़ी नरमी बरतने और चुनाव के लिए मिलकर काम करने की अपील की लेकिन बात कुर्बानी पर आकर फंस गई। मुलायम की कमजोरी अमर और शिवपाल हैं, तो वहीं अखिलेश का हाथ रामगोपाल के साथ है। दोनों ही अपने सिपहसालारों को कुर्बान करने के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं। ऐसे में जल्द ही दोनों गुटों के उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची सामने आ सकती है।