उनका जाना साधारण लोगों के उस विश्वास की पुन: प्रतिष्ठा है कि अच्छे कर्म सदा साथ रहते हैं और उन्हें अर्जित किए जाने के समय के संघर्ष और श्रम का मोल एक दिन चुकाते अवश्य हैं। निर्मम राजनीति कुर्सी पर नहीं तो ह्दय से भी ओझल की अनीति पर चलती है लेकिन यदि वह भी 11 वर्षों तक अनदेखे, अनसुने व्यक्ति को अंतिम विदा देने दौड़ पड़े तो यह केवल तभी संभव है जब जाने वाला अटल बिहारी वाजपेयी हो-अजातशत्रु।
लखनऊ के बाद अस्थिकलश अन्य शहरों को भेज दिए गए जहां उनका विसर्जन हुआ। अटल के नाम पर विभिन्न सरकारी योजनाओं, सड़कों और संस्थानों के नामकरण का क्रम भी जारी है। लगभग आधी सदी तक अटल के बहुत निकट रहे लालजी टंडन को बिहार का राज्यपाल भी बना दिया गया। स्पष्ट है कि इस बार 25 दिसंबर को अटल की पहली जयंती भाजपा और सरकार द्वारा बहुत समारोह पूर्वक मनायी जानी है।