“सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2005 के फैसले को पलट दिया है। यह ऐतिहासिक फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने सुनाया।”
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने इस विवाद पर अहम फैसला दिया, जिसमें 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा AMU को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार करने के निर्णय को पलट दिया गया है।
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इस मामले में राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने AMU की ओर से पैरवी की, जबकि सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। सुप्रीम कोर्ट में इस महत्वपूर्ण फैसले का आना देशभर के अल्पसंख्यकों और शिक्षा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
AMU की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और अल्पसंख्यक दर्जे का मामला:
AMU की स्थापना का विचार सर सैयद अहमद खान ने 1877 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना के साथ किया था।
1920 में, ब्रिटिश सरकार के सहयोग से, इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया और इसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम मिला।
हालांकि, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भी इस यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए जमीन दान में दी थी, जिससे विभिन्न संगठनों ने संस्थापक के रूप में उन्हें भी मान्यता देने की मांग की है।
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रिपोर्ट – मनोज शुक्ल
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