मनोज शुक्ल
“अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2005 के फैसले को पलटते हुए 7 जजों की बेंच ने अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में AMU को मंजूरी दी है।”
लखनऊ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे दशकों से चले आ रहे विवाद का अंत हो गया। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-सदस्यीय बेंच ने 2005 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त कर दिया था।
अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में दर्जा विवाद
इस फैसले ने न केवल विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को फिर से स्थापित किया है, बल्कि अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में इसके दर्जे को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद को भी शांत किया है। आइए, इस विवाद की शुरुआत से अब तक की प्रमुख घटनाओं की टाइमलाइन पर नजर डालते हैं और समझते हैं कि कैसे एक शिक्षण संस्थान का दर्जा, सरकारी नीति और न्यायिक प्रक्रियाओं के जरिए देशभर में बहस का मुद्दा बन गया।
आइये इस मामले की पूरी टाइमलाइन जानें…
1951: AMU एक्ट 1920 के सेक्शन 8 और 9 को हटाया गया, जिससे यूनिवर्सिटी ने सभी धर्मों के छात्रों के लिए दरवाजे खोल दिए।
1965: सरकार ने AMU को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन कर दिया, जिससे इसकी सर्वोच्च शक्ति को सीमित कर दिया गया।
1967: सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म कर दिया, यह कहते हुए कि इसे भारत सरकार ने स्थापित किया था।
1981: केंद्र सरकार ने एक्ट में संशोधन कर AMU को अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया।
2005-2006: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के 1981 के संशोधन को असंवैधानिक बताया और AMU का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म कर दिया।
2024: सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के फैसले को पलटते हुए अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया ।
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रिपोर्ट – मनोज शुक्ल