आशीष बाजपेयी
गुजरात मॉडल . . .। यह सियासी जुमला अब बीती बात हो चुका है। हाल के दिनों के राजनीतिक नारों पर कान दें, तो नेपथ्य में जा चुके गुजरात मॉडल की जगह अब योगी के यूपी मॉडल की चर्चा जोर पकड़ चुकी है। कभी इस गुजरात मॉडल ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की भारत विजय का नए सिरे से मार्ग प्रशस्त किया था। उसी तर्ज पर अब योगी के यूपी मॉडल की ब्रांडिंग होनी शुरू हो चुकी है। ‘बंटेंगे, तो कटेंगे’ के नारे के पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय राजनीति में योगी की लांचिंग के साथ इस मॉडल की परख हरियाणा के बाद झारखंड व महाराष्ट्र में शुरू हो गई है।
गुजरात मॉडल की तीन सबसे अहम विशिष्टताएं रही हैं। पहली गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद गुजरात में जो भी हुआ, उसके अन्य विश्लेषण जो भी हों, हिंदूवादी युवा राज्यों के दायरे से बाहर निकलकर पूरे भारत में उनका मुरीद हो गया। यही वजह है कि 2014 के चुनाव में जब मोदी का विजयरथ यूपी पहुंचा तो मुरझाई पड़ी भाजपा का कमल ऐसा खिला कि सूबे की समूची राजनीति को ढक लिया।
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दूसरा था मोदी का विकास मॉडल। यह यूं तो कुलीन और पूंजीपति वर्ग को लुभाने वाला था, लेकिन अच्छे दिन आएंगे का जुमला सर्वहारा तक को भक्त बना गया। तीसरा था कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सख्त फैसले लेने का, जो पूर्ववर्ती सरकारों की ढुलमुल रवैये के एकदम विपरीत था। मोदी अहमदाबाद सीरियल धमाकों के बाद गुजरात में आतंकवाद को कुचल कर अपनी इस छवि को और पुख्ता कर चुके थे।
यूपी मॉडल या योगी मॉडल इससे दो कदम आगे बढ़कर चल रहा है। एक तरफ जहां धार्मिक पर्यटन और एक जिला एक उत्पाद के जरिये योगी ने यूपी के विकास का अपना दूरदर्शी चेहरा सामने रखा है, वहीं कानून-व्यवस्था और हिंदूवादी सोच को एक-दूसरे से जोड़कर एक पृथक प्रशंसक वर्ग तैयार किया है।
माफिया के खिलाफ ठोंक दो नीति पर युवा व महिला वर्ग का भरोसा तो पुख्ता हुआ ही है, व्यवसाय लायक आज जैसा माहौल बना है, वैसा पहले कभी नहीं बना। उपद्रवियों और दंगाइयों से नष्ट हुई सरकारी संपत्ति की वसूली और त्वरित न्याय का बुल्डोजर ब्रांड का अनुकरण कई राज्य करने लगे हैं।
योगी जब दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं तो ‘बंटेंगे, तो कटेंगे’ के साथ यह बताना नहीं भूलते कि ‘यूपी में सब चंगा सी’। मसलन, योगी बीते मंगलवार को झारखंड की सभा में थे। जब वे जाति, क्षेत्र, भाषा के नाम पर न बंटने की सलाह दे रहे थे, तब यूपी मॉडल की यह कहकर ब्रांडिंग भी कर रहे थे, ‘2017 के पहले यह उत्तर प्रदेश में होता था, लेकिन अब यूपी में न कर्फ्यू, न दंगा, वहां सब चंगा है। . . .
आज कांवड़ यात्रियों पर पत्थरों की नहीं पुष्प वर्षा होती है।’ साथ ही यह कहकर अयोध्या में राम मंदिर की उपलब्धि सामने रखी कि ‘500 वर्षों के बाद अयोध्या में रामलला भव्य मंदिर में विराजे हैं।’ आगे के लक्ष्य की यह कहकर दिशा दिखाई कि ‘ऐसे में कृष्ण कन्हैया भला कहां मानने वाले हैं।’ यह तो बस शुरुआत है। अभी मथुरा भी बाकी है।
महाराष्ट्र के वाशिम में उन्होंने यूपी मॉडल का एक और चित्र खींचा। कहा, ‘शिवाजी महाराज मुगल बादशाह औरंगजेब की सत्ता को चुनौती देने के लिए आगरा गए थे। आगरा में एक मुगल संग्रहालय बनाया जा रहा था, लेकिन, उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद इसका नाम छत्रपति शिवाजी के नाम पर रखा गया।’
इधर, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को योगी प्रदेश में उपचुनाव का बिगुल फूंककर सोमवार से फिर झारखंड व महाराष्ट्र के दौरे पर निकल रहे हैं।