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Karva Chauth 2018: पूजा की कथा से लेकर शुभ मुहूर्त तक, जाने कैसे मनाएं करवाचौथ

सुहागनें सजधज कर, हाथ में छलनी लेकर पहले चांद को और फिर अपने पतियों को देखती सुहागनों को आपने फिल्‍मों में जरूर देखा होगा. उत्‍तर भारत में सुहागन महिलाओं के बीच बड़े जोश-ओ-खरोश के साथ मनाया जाने वाला यह व्रत बॉलीवुड की फिल्‍मों में आपको काफी देखने को मिलता है. करवा चौथ (Karwa Chauth) भारतीय परंपरा में एक ऐसा त्‍योहार है, जिसे सुहागने पूरे उत्‍साह के साथ मनाती हैं. इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ निर्जला व्रत रहती हैं. सुबह सूर्योदय होने के साथ ही पूजा-पाठ की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जो रात को चंद्र दर्शन के साथ समाप्त होती हैं. इसके अलावा इस व्रत के विधान में करवाचौथ की कहानी का भी खास योगदान होता है. महिलाएं 16 श्रंगार कर इस व्रत की कथा पढ़कर सुनाती हैं, तब जाकर ये व्रत पूरा माना जाता है. जानिए इस वर्ष क्‍या है करवा चौथ के पूजन का शुभ मुहूर्त और इस व्रत के दौरान सुनी जाने वाली महत्‍वपूर्ण कथा.

कब है करवा चौथ
इस बार करवा चौथ 27 सितंबर, यानी शनिवार को मनायी जा रही है. दरअसल करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत दीपावली से ठीक 9 दिन पहले मनाया जाता है. यह व्रत हर साल कार्तिक माह की चतुर्थी को आता है.

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ये हैं करवा चौथ मनाने के शुभ मुहूर्त
करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त 27 अक्‍टूबर की शाम 05:36 मिनट से शाम 06:54 मिनट तक है. जबकि चंद्रोदय का समय 8 बजे का है. चंद्रमा को अर्घ देकर पूजा करने वाली स्त्रियां इसी समय यह विधि कर सकती हैं.

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करवा चौथ व्रत की कहानी
करवा चौथ की कहानी वीरवती नाम एक साहूकार की लड़की की कहानी है. इस साहूकार के सात लड़के और एक ही लड़की होती है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी करवा चौथ पर साहूकार की पत्‍नी के साथ उसकी सातों बहुएं और बेटी भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं. सात भाइयों की एकलौती बहन वीरवती अपने भाइयों की बेहद लाड़ली होती है. रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन करने को कहा. इस पर बहन ने जवाब दिया- ‘भाई, अभी चांद नहीं निकला है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी.’

सातों भाई अपनी बहन का भूख से व्याकुल और मुरझाया चेहरा देख नहीं पा रहे थे. ऐसे में साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी. घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है. अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो. साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, सब अर्घ्य देकर भोजन कर लें. ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा, ‘बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं.’ वीरवती ने अपनी भाभियों की बात को अनसुना किया और भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन करने बैठ गई. लेकिन उसने जैसे ही पहला निवाला अपने मुंह में लिया, घर के एक नौकर ने आकर ये खबर दी कि उनके पति की मौत हो गई है. यह सुनते ही वीरवती फूट-फूट कर रोने लगी.

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वीरवती की इसमें कोई गलती नहीं थी और इसलिए देवी उसके सामने प्रकट हो गईं. वीरवती ने माता को अपनी पूरी कहानी सुनाई. देवी ने उसे कहा कि वह एक बार फिर पूरे विधि-विधान और पूरी निष्‍ठा से करवा चौथ का व्रत करे. वीरवती ने ऐसा ही किया और अपने सुहाग के लिए उसका विश्‍वास और पूरी निष्‍ठा से किए व्रत के चलते यम देवता को भी विवश होकर वीरवती के पति को जीवित करना पड़ा.

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