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बच्चों में गिलियन बैरे सिंड्रोम
मदीहा की कहानी

“8 साल की मदीहा ने गिलियन बैरे सिंड्रोम से जीती जंग: KGMU के डॉक्टरों ने दिया नया जीवन, जानिए कैसे मात दी दुर्लभ बीमारी को”

“लखनऊ की 8 साल की मदीहा ने दुर्लभ गिलियन बैरे सिंड्रोमको मात दी। KGMU के डॉक्टरों की देखरेख में 7 महीने तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उसे नया जीवन मिला। जानें कैसे मदीहा ने पैरालिसिस अटैक को मात दी।”

लखनऊ । राजधानी के KGMU (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) में एक बेहद दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण केस में डॉक्टरों ने 8 साल की मदीहा को जीवनदान दिया, जो गिलियन बैरे सिंड्रोम नामक पैरालिसिस अटैक से पीड़ित थी। यह सिंड्रोम एक दुर्लभ तंत्रिका रोग है, जो लाखों में किसी एक बच्चे में ही पाया जाता है और इसमें मरीज का पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो सकता है। मदीहा को इस बीमारी के कारण 7 महीने तक वेंटिलेटर पर रहना पड़ा। KGMU के डॉक्टरों की टीम, जिसमें डॉ. माला कुमार और डॉ. शालिनी त्रिपाठी जैसे विशेषज्ञ शामिल थे, ने लगातार कोशिशों से उसे नया जीवन दिया।

गिलियन बैरे सिंड्रोम क्या है?

गिलियन बैरे सिंड्रोम एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। इस दुर्लभ रोग से पीड़ित मरीजों में तेजी से लकवा होने की संभावना रहती है। डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलती है, जिसमें प्रति 1 लाख बच्चों में सिर्फ एक ही ऐसा मामला पाया जाता है।

बीमारी का पता चलने पर तुरंत KGMU लाया गया

जब मदीहा में बीमारी के लक्षण दिखने लगे, तो उसकी हालत बेहद नाजुक हो गई थी। उसे सांस लेने में दिक्कत, हाथ-पैरों का सुन्न हो जाना जैसे लक्षणों के चलते तुरंत KGMU के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। मदीहा की हालत देखकर डॉक्टरों ने उसे तुरंत वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा।

इलाज में आई चुनौतियाँ

इलाज के दौरान मदीहा को कई तरह की कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। डॉक्टरों ने IG-IV थेरेपी और एंटीबायोटिक्स के जरिए उसकी स्थिति में सुधार लाने की कोशिश की, लेकिन उसकी स्थिति में शुरुआत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। इस बीच, वेंटिलेटर सपोर्ट के कारण उसे संक्रमण और निमोनिया भी हो गया। डॉक्टरों की टीम ने उसे प्लाज्माफेरेसिस और CSF परीक्षण जैसे विशेष उपचार दिए।

माँ का धैर्य और डॉक्टरों की मेहनत

मदीहा की माँ ने कभी भी हार नहीं मानी। ICU में लंबे समय तक रहने और तमाम मुसीबतों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के ठीक होने का हौसला बनाए रखा। वहीं, KGMU की टीम ने मदीहा के इलाज में हर संभव प्रयास किए और इलाज को निशुल्क रखने की भी व्यवस्था की।

स्वास्थ्य में सुधार और अस्पताल से छुट्टी

लगभग 7 महीनों के गहन इलाज के बाद, मदीहा की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। वेंटिलेटर हटाने के बाद उसकी फिजियोथेरेपी और पुनर्वास चिकित्सा के जरिए उसकी कमजोरी को ठीक किया गया। 22 अक्टूबर को मदीहा को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है।

डॉक्टरों का संदेश

डॉ. शालिनी त्रिपाठी और उनकी टीम का कहना है कि इस केस से यह साबित होता है कि बीमारी चाहे जितनी गंभीर क्यों न हो, अगर धैर्य और सही इलाज मिले तो उसे हराया जा सकता है। इस केस ने KGMU के डॉक्टरों की दक्षता और उनके समर्पण को एक नया आयाम दिया है।

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