महाकुंभ मेला : 2025 में वंचित समाज के 71 संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाएगी, जो धार्मिक और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का एक ऐतिहासिक कदम है। इस पहल का उद्देश्य समाज के हाशिये पर रहे लोगों को धर्म के मुख्यधारा में शामिल करना और सनातन धर्म की समावेशीता को बढ़ाना है। यह प्रशिक्षण उन संतों को दिया जा रहा है जिन्होंने अखाड़ों से जुड़कर संन्यास लिया है, ताकि वे मठ-मंदिरों के संचालन और धार्मिक गतिविधियों में अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से निभा सकें।
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जूना अखाड़ा ने पिछले 10 वर्षों में वंचित समाज के लगभग 5,620 लोगों को संन्यास दिलाया है। इसके तहत पहले भी अनुसूचित जाति के संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी जा चुकी है, जैसे कि 2018 में कन्हैया प्रभुनंद गिरि। इसी क्रम में 2024 में गुजरात के विभिन्न संतों को भी महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई।
इस पहल को धर्मगुरुओं और प्रमुख धार्मिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जैसे वरिष्ठ धर्मगुरुओं ने इसे सनातन धर्म की समावेशी शक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक बताया है। जूना अखाड़ा के महंत हरि गिरि ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि मतांतरण की समस्या से निपटने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण है, क्योंकि धार्मिक और सामाजिक उपेक्षा इसके प्रमुख कारण हैं।
इसके अलावा, महाकुंभ के आयोजन को दिव्य और भव्य बनाने के लिए धार्मिक स्थलों को जाने वाले मार्गों को चौड़ा करने की भी योजना बनाई गई है। लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशानुसार 1,758 करोड़ रुपये के बजट के साथ इन मार्गों के पुनर्विकास का काम शुरू किया है।
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