लखनऊ। समाजवादी पार्टी में रामगोपाल यादव की ससम्मान वापसी के बाद पार्टी कार्यालय का नजारा कुछ ‘उजड़ा हुआ गुलशन है, रोता हुआ माली है’ जैसा लगा।
हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ‘वाररूम’ कहे जाने वाले जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट में माहौल खुशगवार दिखा।
पार्टी कार्यालय में आज गुरूवार को समाजवादी महिला सभा की पदाधिकारियों की बैठक थी। सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल ने महिला प्रतिनिधियों को संबोधित किया और चुपचाप पार्टी दफ्तर से चले गए। चलते-चलते जब उनसे रामगोपाल की वापसी के बारे में पूछा गया तो कुछ दाशर्निक अंदाज में कहा,‘नेताजी’ मालिक हैं,उनका निर्णय सभी को स्वीकार है।
शिवपाल ने भले ही कुछ न कहा हो, लेकिन चेहरे ने सबकुछ बयां कर दिया। शिवपाल भी बहुत देर तक अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाए। दोपहर होते-होते उनका सयंम भी जवाब दे गया। या कहा जाए कि उनकी दर्द छलक गया। पैकफेड के कार्यक्रम में शिवपाल ने कहा कि आज के दौर में पद ही सबकुछ है। पद नहीं है तो कुछ भी नहीं।
शिवपाल का दर्द यह था कि इस कार्यक्रम में एक भी सरकारी अधिकारी मौजूद नहीं था। शिवपाल ने इसे लेकर अखिलेश पर अप्रत्यक्ष हमला भी किया। उन्होंने कहा कि अफसरों को मना किया गया है कि वे कार्यक्रम में न आएं। शिवपाल ने तो यहां तक कह दिया कि इस विभाग में अधिकारी पहले से ही कमीशन तय कर लेते हैं।
वहीं पार्टी कार्यालय में भी अजीब सी खामोशी थी। समाजवादी महिला सभा की पदाधिकारियों की बैठक के कारण कार्यालय में महिलाओं की अच्छी-खासी संख्या थी। सभी अपने अध्यक्ष से मिलवाने के लिए वहां मौजूद नेताओं के चक्कर काट रहीं थीं, लेकिन कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं था कि ‘अध्यक्षजी’आएंगे या नहीं।
वहीं रामगोपाल प्रकरण पर सबके पास बस एक ही रटा रटाया जवाब था कि ‘नेताजी’ का निर्णय है और सपा में उनका निर्णय सभी को मान्य है। वहीं शिवपाल के अत्यधिक कृपापात्र एक नेता ने इस मामले को कुछ बौद्धिक रूप देना चाहा तो उनका दर्द बाहर आ गया। उनका कहना था कि राजनीति में जिसका तिरस्कार होता है, वही अंत में जीतता है।
पद न रहने पर भी नेता की असली ताकत का पता चलता है। गांधीजी भी ट्रेन से फेंके जाने के बाद ही नेता के रूप में उभरे थे। राजनीति में तो यह सब चलता है।
दूसरी ओर, जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट में सभी एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। हालांकि कोई प्रदेश अध्यक्ष पर टिप्पणी नहीं कर रहा था, लेकिन सभी रामगोपाल की वापसी को उत्साहित थे।
अन्य दिनों की तुलना में आज वहां भीड़ भी ज्यादा थी। इस भीड़ में आज फरियादियों ज्यादा नेताओं की संख्या ज्यादा थी। लोगों में इस बात को लेकर ज्यादा ही उत्साह था कि ‘नेताजी’ ने पक्का काम किया, बकायदा टाइप लेटर पर दस्तखत करके प्रोफेसर साहब की वापसी कर दी और किसी को कानो-कान भनक तक नहीं लगने दी। आगे भी जो होगा अच्छा ही होगा। शायद उनका इशारा टिकट बंटवारे को लेकर था।
सपा के सूत्रों का कहना है कि ‘नेताजी’ के इस फैसले से यह तय हो गया कि पार्टी में कौन कितने पानी में है। फिर भी अगर कोई गलतफहमी पाले हुए है तो उसे जल्द ही अपनी हैसियत के बारे में पता चल जाएगा। फिलहाल मुलायम की गाजीपुर रैली तक सबकुछ ऐसे ही चले। पर उसके बाद दूसरे किसी बड़े फसले को नकारा भी नहीं जा सकता है।