लखनऊ/नई दिल्ली, 05 मई। संस्कृत संवर्धन में उत्तर प्रदेश ने एक बार फिर देशभर में अपनी अग्रणी भूमिका को सिद्ध किया है। योगी आदित्यनाथ सरकार के अथक प्रयासों और नीतिगत प्रतिबद्धता के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान को एक राष्ट्रीय मंच पर विशिष्ट सम्मान से नवाजा गया है।
यह सम्मान दिल्ली विश्वविद्यालय के खेल परिसर में आयोजित 1008 सामूहिक संस्कृत संभाषण शिविरों के समापन समारोह में प्रदान किया गया, जिसका आयोजन संस्कृतभारती, दिल्ली और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। समारोह में देशभर से आए विद्वानों, शिक्षकों, विद्यार्थियों और संस्कृत प्रेमियों ने भाग लिया।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले वर्षों में किए गए कई कदम—जैसे कि संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति, संवादात्मक प्रशिक्षण शिविर, पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण और विशेष बजट प्रावधान—संस्कृत संवर्धन में उत्तर प्रदेश की सफलता के मुख्य आधार बने। यह पुरस्कार केवल एक संस्थान की उपलब्धि नहीं, बल्कि राज्य की शिक्षा और संस्कृति नीति की राष्ट्रीय मान्यता है।
संस्थान की समन्वयिका राधा शर्मा ने यह सम्मान ग्रहण करते हुए इसे योगी सरकार के मार्गदर्शन और संस्कृत भाषा के प्रति निष्ठा का प्रतिफल बताया। उन्होंने कहा, “यह पूरे प्रदेश की शिक्षा-संस्कृति नीति की विजय है, जिसने संस्कृत को पुनः जनसंचार की भाषा बनाने की दिशा में ठोस कार्य किया है।”
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संस्थान के कई प्रशिक्षकों ने इस अभियान को सशक्त रूप से आगे बढ़ाया। प्रमुख नामों में अंजु मिश्रा, आस्था शुक्ला, डॉ. दिवाकर मिश्र, गीता वशिष्ठ, रजनीश तिवारी और रुद्रनारायण पांडेय आदि शामिल हैं, जिनकी समर्पित भूमिका से शिविरों का संचालन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
इस समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता तथा मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृतभारती के संगठन मंत्री जयप्रकाश उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. वागीश बी. जी. ने की।
संस्कृत संवर्धन में उत्तर प्रदेश की यह उपलब्धि आने वाले समय में अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनेगी, विशेषकर जब बात भारतीय भाषाओं के पुनरुद्धार और संरक्षण की हो।