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अमेरिकी चुनाव में महिला उम्मीदवारों का संघर्ष

क्यों अमेरिका को अभी भी नहीं मिली महिला राष्ट्रपति? जानें कारण और प्रभाव

अमेरिका में 5 नवंबर को होने वाले चुनावों में, एक बार फिर महिलाएं राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं। अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में, केवल दो महिलाएं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनी हैं: हिलेरी क्लिंटन (2016) और कमला हैरिस (2020)। हालांकि, अमेरिका अब तक एक महिला राष्ट्रपति को नहीं चुन पाया है। यह रिपोर्ट इस स्थिति के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास करती है।

महिलाओं ने अमेरिका में राजनीतिक भागीदारी के लिए संघर्ष करते हुए एक लंबा सफर तय किया है। 1848 में, सेनिका फॉल्स सम्मेलन में, महिलाओं ने मतदाता अधिकारों की मांग की। यह सम्मेलन महिलाओं के अधिकारों के आंदोलन की नींव बना। लेकिन महिलाओं को अमेरिका में वोट देने का अधिकार 1920 में, 19वें संशोधन के तहत मिला। यह अधिकार मिलने के बाद भी, महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि धीमी रही।

1920: 19वां संशोधन पास हुआ, जिसके बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।

1965: वोटिंग राइट्स एक्ट लागू हुआ, जिसने मतदान में भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया।

विक्टोरिया क्लेफिन वुडहल का जन्म 1838 में हुआ था। वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने 1870 में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए नामांकित होने का साहस दिखाया। उनका मानना था कि उन्हें महिलाओं के अधिकारों और समाज में सुधार के लिए लड़ाई लड़ने का अधिकार है। वुडहल के खिलाफ कई आरोप लगे, जिसमें एक प्रमुख आरोप यह था कि उन्होंने उस समय के एक महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता के साथ संबंध बनाए थे। उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को दृढ़ता से रखा, लेकिन उन्हें राष्ट्रपति बनने में असफलता का सामना करना पड़ा।

माग्रेट चेस स्मिथ (1964) का नामांकन एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने यह दिखाया कि महिलाओं ने राजनीतिक मंच पर अपनी जगह बनाने के लिए कितना संघर्ष किया है। उनके अनुसार, “महिलाओं को राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ा है।” यह सोच महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को केवल उनके लिंग के कारण चुनावी प्रक्रिया में कैसे हाशिए पर रखा जाता है।

1970: एक सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 11% महिलाओं ने कभी किसी राजनीतिक पद के लिए चुनावी दौड़ में भाग लिया था।

शर्ली चिसहोम ने 1972 में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा की। वह अमेरिका की पहली अश्वेत महिला थीं जो राष्ट्रपति पद के लिए दौड़ में शामिल हुईं। चिसहोम ने कहा, “मैं अश्वेत हूं, लेकिन मैं केवल अश्वेतों की उम्मीदवार नहीं हूं। मैं सभी अमेरिकियों की उम्मीदवार हूं।” उन्हें चुनावी अभियान के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें भेदभाव और पूर्वाग्रह शामिल थे। चिसहोम की कहानी दर्शाती है कि कैसे सामाजिक पूर्वाग्रह ने महिलाओं की राजनीतिक संभावनाओं को बाधित किया।

2018: एक अध्ययन में पाया गया कि अश्वेत महिलाओं को मतदान में भाग लेने के लिए अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

जेरी फेरारो (1984) को उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में चुना गया। उनके चुनाव अभियान के दौरान कई सवाल उठाए गए, जैसे कि “क्या आप न्यूक्लियर बटन दबा पाएंगी?” इस तरह के सवालों ने दर्शाया कि अमेरिका में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह अभी भी प्रचलित हैं। फेरारो ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, “महिलाओं को हमेशा अपने फैसलों के लिए सवालों का सामना करना पड़ता है, जबकि पुरुषों को नहीं।”

2020 में: एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 61% पुरुषों ने कहा कि वे महिला राष्ट्रपति को स्वीकार नहीं करेंगे।

महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए कई संगठन कार्यरत हैं। ऑर्गेनाइजेशन फॉर वुमेन जैसे समूह महिला उम्मीदवारों को प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करते हैं, ताकि वे चुनावी प्रक्रिया में भाग ले सकें।

तथ्य:

2019: एक अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में महिला उम्मीदवारों की संख्या में 24% की वृद्धि हुई है।

अमेरिका में अब तक कोई महिला राष्ट्रपति न बनने की कई वजहें हैं, जिनमें ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव शामिल हैं। महिलाएं पहले से ही कई बाधाओं का सामना कर रही हैं, और यह आवश्यक है कि समाज और राजनीति में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सभी को एक साथ आना होगा।

2020 में, 30% महिलाओं ने स्थानीय चुनावों में भाग लिया, जबकि पुरुषों की संख्या 45% थी।

अमेरिका में महिलाएं राष्ट्रपति बनने की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अभी भी बहुत काम करना बाकी है। इतिहास से सीखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती रहें और राजनीतिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करें। एक महिला राष्ट्रपति का चुनाव न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।

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