जैसे ही इस महीने की शुरुआत में भारत और पाकिस्तान के बीच मिसाइल और ड्रोन हमले शुरू हुए, एक और अदृश्य युद्ध भी चल रहा था—एक सोशल मीडिया युद्ध, जिसमें झूठ, भ्रामक सूचनाएं और प्रोपेगेंडा की बाढ़ आ गई।
ऑपरेशन सिंदूर के ऐलान के साथ ही सोशल मीडिया पर भारत की सैन्य जीत के झूठे दावे वायरल हुए। भारतीय मीडिया चैनलों ने इन्हें “ब्रेकिंग न्यूज़” बनाकर दिखाया—कभी पाकिस्तान के लड़ाकू विमान गिराए जाने की खबर, कभी लाहौर और कराची बंदरगाह पर कब्जे का दावा, और कभी पाकिस्तानी सेना प्रमुख की गिरफ्तारी की अफवाह। इन दावों के साथ जो वीडियो क्लिप साझा किए गए, वे या तो पुराने थे, या वीडियो गेम, या AI-जनित।

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10 मई को युद्धविराम की घोषणा ने दोनों देशों को पूर्ण युद्ध से तो बचा लिया, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इस संघर्ष ने एक नया मोर्चा खोल दिया है—जानकारी के माध्यम से युद्ध (Informational Warfare)। भारत और पाकिस्तान, दोनों तरफ से सोशल मीडिया पर झूठी सूचनाओं की बाढ़ आई, जिसे न केवल आम यूज़र्स ने, बल्कि पत्रकारों और सरकारी प्रतिनिधियों ने भी आगे बढ़ाया।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में यह अभियान एक संगठित पैमाने पर चला। फैक्टचेकिंग प्लेटफॉर्म्स और मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार का सोशल मीडिया युद्ध अब तक के सबसे बड़े प्रचार अभियानों में से एक था। “ब्रेकफास्ट इन रावलपिंडी” जैसे ट्रेंड्स ने युद्ध की धारणा को और भड़काया।

दूसरी ओर, पाकिस्तान में भी भ्रामक खबरों की बाढ़ आ गई। एक्स (पूर्व में ट्विटर) से प्रतिबंध हटते ही वहां से भी फर्जी सूचनाओं की शुरुआत हुई। पाकिस्तानी पायलट द्वारा भारतीय एयरबेस पर कब्जा करने, भारतीय सेना की आत्मसमर्पण की खबरों और यहां तक कि साइबर हमलों से भारत की पावर ग्रिड को ठप करने जैसे दावे तेजी से वायरल हुए।
एक ताज़ा रिपोर्ट में सिविल सोसाइटी संस्था The London Story ने बताया कि किस तरह एक्स और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर युद्ध से जुड़ी भावनात्मक और झूठी जानकारियों को वायरल किया गया। मेटा (फेसबुक की पेरेंट कंपनी) ने कहा कि उन्होंने गलत जानकारी वाले कंटेंट को हटाया और तथ्य-जांच वाली सामग्री को टैग किया, लेकिन नुकसान हो चुका था।
अमेरिका स्थित Centre for the Study of Organized Hate (CSOH) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तरफ से फैलाई गई अधिकांश जानकारी पहले एक्स और फेसबुक पर पोस्ट की गई और फिर टीवी चैनलों पर पहुंची। रिपोर्ट में कहा गया कि कुल 427 प्रमुख पोस्ट्स में से केवल 73 को ही कोई चेतावनी टैग मिला। इनमें से कई पोस्ट्स को 10 मिलियन से ज़्यादा व्यूज़ मिले।

भारत की ओर से वायरल किए गए कई वीडियोज़ पुराने थे—2023 का गाजा पर इज़राइली हमला, जिसे भारतीय हमले के रूप में दिखाया गया; भारतीय नौसेना की ड्रिल को कराची बंदरगाह पर हमले के रूप में बताया गया। कई क्लिप्स वीडियो गेम से लिए गए थे, तो कुछ रूस-यूक्रेन युद्ध की फुटेज थीं। AI-जनित इमेजेस के माध्यम से पाकिस्तानी पायलट की गिरफ्तारी और इमरान खान की हत्या की अफवाहें फैलाई गईं।
इन सब दावों को कुछ भारतीय मीडिया चैनलों ने भी प्रसारित किया, जिससे उनके पत्रकारिता के सिद्धांतों पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ टीवी एंकर्स ने माफी भी मांगी है। Citizens for Justice and Peace (CJP) ने छह प्रमुख चैनलों के खिलाफ प्रसारण नियमों के उल्लंघन की शिकायत दर्ज की है।
CJP की सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, “इन चैनलों ने पत्रकारिता की मर्यादा छोड़ दी और सीधे प्रोपेगेंडा का हिस्सा बन गए।” उन्होंने इसे “प्रचार का युद्ध” बताया, जिसमें मीडिया एक हथियार बन गया।
सरकार की ओर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार कंचन गुप्ता ने सरकार की भूमिका से इनकार किया। उन्होंने कहा, “सरकार ने फेक न्यूज़ के खिलाफ कदम उठाए। एक मॉनिटरिंग सेंटर 24×7 चला और सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर भ्रामक अकाउंट्स को बंद किया गया।”
लेकिन सवाल अब भी बाकी हैं—क्या युद्ध की स्थिति में झूठी खबरों को टालना संभव है? क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सख्त नीतियों की ज़रूरत नहीं है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक नया युद्धक्षेत्र है—जहां लड़ाई बम और गोलियों से नहीं, बल्कि सूचनाओं से लड़ी जा रही है। और यह लड़ाई उतनी ही खतरनाक है, क्योंकि इससे न केवल भ्रम पैदा होता है, बल्कि परमाणु हथियारों से लैस दो देशों को युद्ध के करीब भी ले जा सकता है।
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