जोधपुर। 53 साल में अलग-अलग हादसों में एयर फोर्स अपने 495 विमान गंवा चुकी है। इन हादसों में पौने दो सौ पायलेट्स को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। यहीं कारण है कि बोलचाल में एयर फोर्स के पायलेट्स इसे फ्लाइंग कोफिन के नाम से पुकारते है। सोवियत संघ की ओर से विकसित मिग श्रेणी के लड़ाकू विमानों को सबसे पहले वर्ष 1963 में इंडियन एयर फोर्स में शामिल किया गया था। मिग श्रेणी के करीब 900 फाइटर इंडियन एयर फोर्स में शामिल किए गए। इसमें से करीब 495 विमान हादसों का शिकार हो चुके है। इन हादसों में एयर फोर्स को अपने 175 पायलेट्स को गंवाना पड़े। हादसों में चालीस आम नागरिक भी मारे गए। सस्ता व रखरखाव आसान होने के कारण पूरी दुनिया में द पीपुल फाइटर के नाम से प्रसिद्ध इस फाइटर को 45 देशों ने अपनाया था। पूरी दुनिया में दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात इसके करीब ग्यारह हजार एयर फ्रेम बनाए जा चुके है। इंडियन एयर फोर्स के पास वर्तमान में मिग की विभिन्न श्रेणी के करीब 360 फाइटर प्लेन है।
कई दशक से नीचे गिरे विमानों का अध्ययन करने के पश्चात निष्कर्ष सामने आया कि इनके नीचे गिरने के पीछे सिर्फ पायलट ही दोषी नहीं होता। हादसों में 39 फीसदी मामले पायलट की गलती से, 39.5 फीसदी मामलों में तकनीकी खराबी, नौ फीसदी बर्ड हिट्स व डेढ़ फीसदी मामलों में ग्राउंड स्टाफ की गलती सामने आई। विशेषज्ञों का कहना है कि बेडे में कम विमान होने के कारण इनका अधिकतम उपयोग किया जा रहा है।