प्रदेश की सपा सरकार वर्ष 2007 में हुए कचहरी सीरियल ब्लास्ट मामले में आरोपियों पर से मुकदमे वापस लेने की तैयारी में थी। मगर अदालत के आदेश ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया था।
इस पर अखिलेश सरकार में संसदीय कार्यमंत्री आजम खां ने कहा था कि सरकार ने हमेशा अदालतों के आदेशों का पूरा सम्मान किया है। सरकार को कोई बेगुनाह लगता है तो पुलिस जांच कराने के बाद मुकदमा वापस लेती है।
कानून से सरकार का टकराव नहीं होना चाहिए। बेगुनाहों को न्याय देने की प्रक्रिया नहीं रुकनी चाहिए। न्याय नहीं मिलता है तो आतंकवाद आता है। देश ने 6 दिसंबर 1992 के बाद मानव बम और आरडीएक्स के बारे में जाना। यह सरकार को झटका नहीं है। यह आखिरी अदालत नहीं है। हम इससे ऊपर की अदालत में जाएंगे।
अखिलेश सरकार ने कचहरी सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों के मुकदमे की वापसी के लिए प्रमुख सचिव न्याय की ओर से अक्तूबर 2012 में जिलाधिकारी को पत्र भेजा था। इसी आधार पर सुनवाई के दौरान विशेष अदालत में विशेष लोक अभियोजक अपर जिला शासकीय अधिवक्ता ने कहा था कि व्यापक जनमानस व सांप्रदायिक सौहार्द के मद्देनजर आरोपियों पर से मुकदमा वापस लिया जाना न्यायोचित होगा।
यह था मामला
लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी में हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोप में एटीएस व एसटीएफ ने खालिद मुजाहिद व तारिक कासमी को गिरफ्तार कर दोनों के कब्जे से जिलेटिन की नौ रॉड, तीन स्टील बजर और डेटोनेटर बरामद किए थे। बाराबंकी कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ था।
पुलिस ने तीन माह में ही कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। जांच में तारिक कासमी को यूपी का हूजी चीफ और खालिद मुजाहिद को यूपी के खौजी दस्ते का कमांडर बताया गया। इन पर मुकदमे की वापसी के लिए अक्तूबर 2012 में शासन ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी थी। इसी के तहत मुकदमा वापसी की कार्यवाही अदालती अंजाम तक पहुंची।