नई दिल्ली। रुस के अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिका चीन से मुकाबले के लिए भारत को अपने सहयोगी के तौर पर ‘‘गले लगाने” की कोशिश कर रहा है, लेकिन नई दिल्ली ‘‘स्वतंत्र बना हुआ है” और शंघाई सहयोग संगठन :एससीओ: जैसे मंचों में शामिल हुआ है।
नेशनल रिसर्च यूनिवर्सिटी हायर स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के सेंटर फॉर कॉम्प्रिहेंसिव यूरोपियन एंड इंटरनेशनल स्टडीज के उप-निदेशक दमित्री सुसलोव ने कहा कि यह देखा गया है कि ‘‘भारत भी अपने यूरेशियाई संबंध बढा रहा है।
” ‘रशिया इन ग्लोबल अफेयर्स इंडियन एंड रशियन पर्सपेक्टिव’ पर आयोजित एक दिवसीय सम्मेेलन को संबोधित करते हुए सुसलोव ने कहा कि रुस के अलावा ऐसा कोई देश नहीं है जिसने अमेरिका को खुले तौर पर चुनौती दी हो।
उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिका ऐसे देशों को कमजोर करने के लिए आर्थिक अंतरनिर्भरता का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है जो अमेरिका की अगुवाई वाले बलों में शामिल नहीं होना चाहते। भारत के मामले में अमेरिका चीन से मुकाबले के लिए उसे गले लगाने की कोशिश कर रहा है। पर इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि भारत ऐसा करने का इच्छुक है।
एससीओ में शामिल होकर भारत ने दिखा दिया है कि वह स्वतंत्र बना हुआ है।” एससीओ एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसकी स्थापना 2011 में हुई थी। चीन, कजाखस्तान, किर्गीज रिपब्लिक, रशियन फेडरेशन, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान की ओर से इसकी स्थापना की गई थी। 10 जुलाई 2015 को एससीओ ने भारत और पाकिस्तान को पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल करने का फैसला किया।
नेशनल रिसर्च यूनिवर्सिटी हायर स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के असोसिएट प्रोफेसर आंद्रेई स्क्रीबा ने कहा कि रुस की विदेश नीति नरम शक्ति सॉफ्ट पॉवर के इस्तेमाल के मामले में अब भी पश्चिम की तरह तैयार नहीं है।
रुस की विदेश नीति के बाबत स्क्रीबा ने कहा कि रुस एशिया-प्रशांत की ओर बढ रहा है और क्षेत्र के साथ अच्छे संबंधों पर जोर दे रहा है।
चीन का हवाला देते हुए सुसलोव ने कहा कि रुस एक ‘‘सहयोगी” के तौर पर नहीं बल्कि एक साझेदार के तौर पर बीजिंग से सहयोग करेगा और ऐसा अपनी शर्तों पर करेगा।