नई दिल्ली: सपा नेता अखिलेश यादव 19 सितंबर से लोकसभा चुनाव 2019 के प्रचार अभियान का आगाज करने जा रहे थे. इसके तहत साइकिल यात्रा शुरू करने का ऐलान किया गया था लेकिन लेकिन ऐन मौके पर फिलहाल इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया है. इसकी एक बड़ी वजह सपा और बसपा के बीच सीटों का संभावित तालमेल नहीं हो पाना और शिवपाल यादव के बागी तेवरों को माना जा रहा है.
साइकिल यात्रा के बारे में कहा जा रहा है कि अखिलेश अब दो वर्षीय खजांची के जन्मदिन से यात्रा शुरू करेंगे. खजांची उस बच्चे का नाम है, जिसने उस वक्त जन्म लिया, जब उसकी मां नोटबंदी के बाद एटीएम की लंबी लाइन में लगी थी. इसी कड़ी में सपा ने बीजेपी के खिलाफ बच्चे को यात्रा का चेहरा बनाने का फैसला किया है. इस कारण खजांची के जन्मदिन यानी दो दिसंबर से यात्रा की शुरुआत की जाएगी. साइकिल ही सपा का चुनाव निशान है.
हालांकि यात्रा को दिसंबर में शुरू करने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं:
1. सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस के संभावित महागठबंधन की चर्चाएं गोरखपुर, फूलपुर, कैराना लोकसभा उपचुनावों के बाद जरूर उपजीं लेकिन सियासी धरातल पर ये तालमेल उतर नहीं सका है. यानी अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है. इसलिए अखिलेश यादव थोड़ा समय लेना चाहते हैं क्योंकि तब तक चुनावी तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी.
2. नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसके साथ ही चुनावी माहौल शुरू होगा. लिहाजा उस वक्त चुनावी अभियान शुरू करना अखिलेश यादव के लिए ज्यादा मुफीद होगा.
3. शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाकर सपा के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है. शिवपाल यादव का सपा का गढ़ माने जाने वाले इटावा और आस-पास के क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव माना जाता है. दोनों का एक ही वोटबैंक भी है. सपा ने शिवपाल के मोर्चे को बीजेपी की बी-टीम कहा है. शिवपाल ने भी यह कहकर अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी कि इस मोर्चे को सपा-बसपा गठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए. इससे साफ जाहिर है कि वह सपा के विकल्प के रूप में अपने मोर्चे को पेश कर रहे हैं.
4. लखनऊ की सियासत में इस बात की भी चर्चा हो रही है कि ज्यादा सीटों की मांग के कारण बसपा के साथ यदि सपा का समझौता नहीं हो पाता तो बसपा, कांग्रेस और समाजवादी सेक्युलर मोर्चा में तालमेल हो सकता है.
5. इस बीच पश्चिम उत्तर प्रदेश खासकर सहारनपुर क्षेत्र में चंद्रशेखर आजाद की भीम पार्टी उभर रही है. वह जेल से भी रिहा हो गए हैं. बसपा ने उनको अपनाने से भी इनकार कर दिया है. ऐसे में यदि सपा और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो आजाद सपा के लिए ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पश्चिमी यूपी में दलितों का 30 प्रतिशत वोटबैंक है. लिहाजा दिसंबर तक सियासी ताश के पत्ते पूरी तरह से फेंटे जाने के बाद ही अब अखिलेश अपनी साइकिल यात्रा शुरू करेंगे.
Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal