नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को व्यवस्था दी है कि वैवाहिक मतभेदों से जुड़े मामले जम्मू.कश्मीर से बाहर स्थानांतरित किए जा सकते हैं। ऐसा वादियों को समय पर न्याय सुनिश्चित कराने के लिए किया गया है। उल्लेखनीय है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के मामलों के स्थानांतरण से संबंधित नियम जम्मू.कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते। जिसके चलते जम्मू.कश्मीर के स्थानीय कानून वादी के अनुरोध पर मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की इजाजत नहीं देते । संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि सबको न्याय पाने का अधिकार है। अगर कोई किसी दूसरे राज्य में जाकर यात्रा करने में असमर्थ है तो वो एक तरह से न्याय पाने से वंचित है। ऐसे में उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार है कि वह सभी को न्याय दिलाए।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि न्याय पाना सभी वादियों का अधिकार है और इसे सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष अदालत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल कर मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित कर सकती है। पीठ में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्लाए एके सिकरीए एसए बोबडे और आर भानुमति भी शामिल हैं। यह फैसला कुछ याचिकाओं के आधार पर आया है। इन्हीं में से एक मामला अनिता कुशवाह का थाए जिसमें उन्होंने अपने मामले को जम्मू.कश्मीर से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की थी।