कानपुर। कारगिल युद्ध में दुश्मनों को तबाह करने में अहम भूमिका अदा करने वाला पिनाका रॉकेट ट्रायल में फेल हो गया जिसके बाद कानपुर सहित सभी आर्डिनेंस फैक्ट्रियों में इसके उत्पादन पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही यह जांच की जा रही है कि किस संस्थान ने इसके कम्पोनेंट का निर्माण किया है।
पिनाका रॉकेट डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन) का प्रोडक्ट है। इसके निर्माण की जिम्मेदारी आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड को दी गई थी जिसके बाद कई वर्षों से कानपुर, जबलपुर, नागपुर सहित लगभग आधा दर्जन आर्डिनेंस संस्थान इसके कम्पोनेंट का निर्माण कर रहे थे। बीते दिनों कम दूरी की मारक क्षमता वाले सबसे उन्नत स्वदेशी रॉकेटों में से एक पिनाका रॉकेट का नौसेना ने एक क्रूज पर परीक्षण किया लेकिन पांच किलोमीटर लक्ष्य भेदने के बजाय यह 200 मीटर में ही दग गया।
इसके बाद कुछ और रॉकेटों का परीक्षण हुआ वे भी लक्ष्य से पहले ही जा गिरे। भरोसेमंद रॉकेट के लक्ष्य साधने में असफल होने पर रक्षा मंत्रालय ने जांच बैठा दी है। सूत्रों ने बताया कि दो माह से देश की पांच आर्डनेंस फैक्ट्रियों में बन रहे इसके कम्पोनेंट के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। यह जांच की जा रही है किन पार्टों में खामी हुई है और यह किस संस्थान से बने हैं। बताया जा रहा है कि एक पिनाका की कीमत करीब 25 लाख रूपए होती है।
55 किमी. तक है अचूक निशाना
रूस द्वारा निर्मित ‘पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम’ की रेंज करीब 38 किलोमीटर की थी लेकिन डीआरडीओ ने इसके सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करते हुए इसकी मारक क्षमता 55 किलोमीटर दूरी तक बढ़ा दी। यह अचूक निशाना के साथ 44 सेकेण्ड में 12 रॉकेट्स फायर करता है। 1995 में इसका पहली बार सफल परीक्षण किया गया था।
पहले भी हो चुका है असफल
पिनाका के विकास के लिए रक्षा मंत्रालय ने 1986 में मंजूरी दी थी। इसके विकास का मकसद 30 किलोमीटर तक दूर बैठे दुश्मन को तबाह करना था। 1997 के बाद चांदीपुर टेस्ट रेंज में 192 बार पिनाका का परीक्षण किया गया। करगिल की लड़ाई के दौरान भी पिनाका का इस्तेमाल किया गया लेकिन 12 दिसंबर 2008 को जब पोखरण में इसका परीक्षण किया गया तो दो रॉकेट छोड़ने के बाद इसका तीसरा रॉकेट लांचर में ही फट गया।