पांच साल पहले म्यूचुअल फंड नियामक ने सभी फंड को निर्देश दिया था कि वे डायरेक्ट टू द कस्टमर का विकल्प भी अनिवार्य रूप से दें। इन बीते वर्षो में हर जानकार निवेशक को यह समझ में आ गया है कि डायरेक्ट फंड का क्या फायदा है। उन्हें पता है कि निवेशक किसी भी फंड में डायरेक्ट निवेश कर सकते हैं। यह सस्ता पड़ता है, क्योंकि इस पर म्यूचुअल फंड कंपनी को रिटेलर को कुछ नहीं देना होता। इसीलिए कंपनी इस पर खर्च के रूप में कम पैसे काटती है।
क्या डायरेक्ट फंड हर निवेशक के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनाव हैं?
सस्ता होने का सीधा सा अर्थ है कि इससे रिटर्न ज्यादा मिलता है। सवाल है कि डायरेक्ट फंड निवेश से कितना ज्यादा रिटर्न मिलता है? इससे सालाना थोड़ी सी राशि ज्यादा मिलती है, लेकिन इसे कई साल में मिलाकर देखें, तो निश्चित रूप से ठीकठाक राशि बन जाती है। अब आपके मन में यह सवाल उठेगा कि क्या डायरेक्ट फंड हर निवेशक के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनाव हैं? इस प्रश्न का उत्तर है, कदापि नहीं। रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान के रिटर्न में सालाना कुछ एक से दो फीसद का फर्क पड़ता है। आप समझ सकते हैं कि यह अंतर करीब उतना ही होता है, जितनी राशि उन्हें डिस्ट्रीब्यूटर को देनी पड़ती। ऐसे में सस्ते की ओर भागने की आदत हर निवेशक के लिए सही साबित हो, ऐसा जरूरी नहीं है। डायरेक्ट प्लान में निवेश के लिए निवेशक का जानकार होना जरूरी होता है।
इससे होने वाले रिटर्न पर जीएसटी भी लगता है
म्यूचुअल फंड आपके लिए जो भी करते हैं, उसका शुल्क आपकी निवेश की हुई राशि में से काट लिया जाता है। इक्विटी फंड के लिए फंड कंपनियां 1.75 फीसद से 2.5 फीसद तक का शुल्क ले सकती हैं। इसके अलावा इस पर जीएसटी भी लगता है। कुल मिलाकर यह शुल्क सालाना तीन फीसद के आसपास बनता है। इस मद में हर महीने थोड़ी-थोड़ी राशि काटी जाती है। यही राशि फंड कंपनी को मिलती है। थोड़ा सा हिस्सा उस डिस्ट्रीब्यूटर को मिलता है, जो आपको फंड बेचता है। किसी म्यूचुअल फंड में निवेशकों से समान दर से शुल्क लिया जाता है।
निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प कौन है
अब हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान में कौन बेहतर विकल्प हो सकता है? इसके लिए हमें यह समझना होगा कि निवेश करते समय किसी सलाहकार की क्या भूमिका होती है। एक पुरानी अमेरिकी फाइनेंशियल कंपनी ने में एक सूची तैयार की थी। इसके मुताबिक सलाहकार निम्नलिखित भूमिकाएं निभाता है