मल्ल गणराज्य की समृद्धि, बुद्ध की साक्षी हिरण्यवती नदी अब अपने वजूद के लिए जूझ रही है। कभी कल-कल बहने वाली नदी का पानी काला हो गया है। इतिहास पढ़कर पहुंचने वाले पर्यटक विश्वास नहीं कर पाते कि यह वही बुद्धकालीन नदी है। कई स्थानों पर नदी इतनी संकीर्ण हो गई है कि यह नाला के रूप में दिखती है। इसका पानी जानवरों के पीने योग्य नहीं बचा है। 
यह बौद्ध मतावलंबियों के लिए गंगा नदी की तरह पावन व पवित्र मानी जाती है। वजूद खोती नदी को बचाने के लिए प्रख्यात गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बा राव ने छह साल पूर्व पहल की थी। कुदाल चला सफाई कर प्रशासन व शासन को आइना दिखाया। इस आइने में झांकने की कोशिश ही नहीं की गई। बीच-बीच में नदी की महत्ता को देखते हुए प्रशासन ने हाथ जरूर बढ़ाया, लेकिन मुकाम तक नहीं पहुंचे। लाखों रुपये खर्च भी हुए, लेकिन बात नहीं बनी। बात पर्यटन विकास की आई तो दो वर्ष पूर्व एक बार फिर प्रशासन ने इसके कायाकल्प की पहल की। पानी बनाए रखने व सैलानियों को रिझाने के लिए पाथ वे बनाया। हाईमास्ट की व्यवस्था की। बात फिर भी अधूरी रह गई, क्योंकि योजना परवान न चढ़ सकी।
यह थी योजना
नदी का कायाकल्प कर बौद्ध मतावलंबियों व पर्यटकों को इस तरफ खींचना। पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना। नदी में अनवरत पानी रखने के साथ बोङ्क्षटग व लाइङ्क्षटग का इंतजाम करना। नदी के धार्मिक महत्ता को बताना।
नदी का इतिहास
बुद्ध का दाह संस्कार इसी नदी के तट पर हुआ था। जातक कथाओं के मुताबिक तट पर चिता सजाई गई, लेकिन उसमें सात दिन तक आग न पकड़ सकी। वैशाली से 500 भिक्षुओं के साथ बुद्ध के शिष्य कश्यप चले। रात होने पर नदी के तट के किनारे रुके। सुबह पार उनके पहुंचते ही चिता खुद जल उठी।
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाया जाएगा
इस संबंध में कुशीनगर के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट अभिषेक पाण्डेय ने कहा कि हिरण्यवती के कायाकल्प व सुंदरीकरण को लेकर काफी कुछ किया गया है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है, उसे भी किया जाएगा। इसको पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाया जाएगा तो ऐतिहासिक व धार्मिक महत्ता को और प्रमुखता से रखा जाएगा।
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