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उमेश को लेकर भाजपा की बेचैनी, असंतुष्टों को मनाने की इन्हें सौंपी जिम्मेदारी

भाजपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष और महापौर पद के दावेदार रहे उमेश अग्रवाल को लेकर पार्टी में बेचैनी बरकरार है। इसकी वजह वह अफवाह है, जिसमें कहा जा रहा है कि उमेश कभी भी कांग्रेस से जुड़ सकते हैं।

भाजपा के महापौर पद के प्रत्याशी सुनील उनियाल गामा ने रूठों को मनाने को लेकर विशेष अभियान चलाया। वह तमाम ऐसे प्रत्याशियों से मिले, जिन्होंने बगावत कर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ पर्चा भरा है या जो प्रचार अभियान से अभी भी दूर हैं। 

हालांकि, गामा ने टिकट न मिलने से नाराज बताए जा रहे उमेश अग्रवाल से संपर्क नहीं साधा। ऐसे में माना जा रहा है कि उमेश अग्रवाल की नाराजगी पार्टी के उपेक्षित रवैये को लेकर काफी अधिक है। वहीं, पार्टी के लिए बेचैनी की बात यह भी यह कि उमेश अग्रवाल के कांग्रेस का दामन थामने की बात भी लगातार सामने आ रही है। 

गामा के नामांकन वाले दिन न सिर्फ उमेश अग्रवाल अनुपस्थित रहे थे, बल्कि दिनभर यह चर्चा आम रही कि वह कांग्रेस से जुड़ सकते हैं। खास बात यह कि स्वयं उमेश अग्रवाल ने कांग्रेस से ऑफर मिलने की बात स्वीकार की थी, मगर साथ ही साफ किया था कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। 

इसके साथ ही उन्होंने फिर स्पष्ट किया कि कुछ लोग जनबूझकर ऐसी अफवाह फैला रहे हैं। यदि ऐसी कोई बात होती तो वह पहले ही फैसला ले चुके होते। फिर भी ऐसी अफवाहों को लेकर भाजपा इसलिए भी चिंतित है कि उमेश अग्रवाल मैदानी मूल के वोटरों में अच्छी पैठ रखते हैं और कारोबारी वर्ग का भी उन्हें अच्छा खासा समर्थन प्राप्त है।

मंत्रियों व जिलाध्यक्षों को असंतुष्टों को साधने का जिम्मा

निकाय चुनावों में बड़ी संख्या में असंतुष्टों के मुकाबले में उतरने से भाजपा सकते में हैं। भाजपा ने अब इन बागियों को मनाने की रणनीति बनाई है। इस कड़ी में मंत्रियों, विधायकों व जिलाध्यक्षों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके साथ ही चुनाव संचालन समिति का गठन भी किया गया है। 

यह समिति सभी निकायों में चुनावों पर नजर रखेगी। भाजपा के लिए यह चुनाव बेहद अहम हैं। लोकसभा चुनाव से पहले इनके जरिये जनता के रुख का अंदाजा लग सकेगा। इसे देखते हुए भाजपा ने बेहद संभलते हुए प्रत्याशियों के नाम तय किए। 

प्रदेश नेतृत्व द्वारा खासी सावधानी बरते जाने के बावजूद टिकट वितरण को लेकर पार्टी के भीतर गहरी नाराजगी देखने को मिली है। सात में से पांच नगर निगमों के साथ ही विभिन्न पालिकाओं व पंचायतों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बगावत का झंडा खड़ा करते हुए निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में ताल ठोक दी है। 

इनमें से कई प्रत्याशी तो पार्टी प्रत्याशी को खासा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं। शुरुआत में भाजपा ने इस पर सख्त रुख दिखाने का प्रयास किया, लेकिन जब असंतुष्ट नहीं माने तो पार्टी ने अब अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है। 

इस रणनीति के तहत प्रभारी मंत्री व मंत्रियों के साथ ही स्थानीय विधायकों को ऐसे असंतुष्टों को मनाने का जिम्मा सौंपा गया है। इसके साथ ही जिलाध्यक्षों को भी असंतुष्टों से बात करने को कहा गया है। इसके लिए बागियों के नजदीकियों को साथ रख बैठक करने को कहा गया है। 

सूत्रों की मानें तो संगठन ने दमदार असंतुष्टों को जरूरत पड़ने पर उन्हें पार्टी में पद देने के साथ ही सरकार में दायित्व देने तक का प्रस्ताव दिया जा सकता है। मकसद यह कि किसी भी तरह इन्हें पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में नामांकन वापस लेने के लिए तैयार किया जा सके। 

इस संबंध में प्रदेश नेतृत्व को भी लगातार अपडेट किया जाएगा। इस कड़ी में जिलाध्यक्षों ने तो ऐसे असंतुष्टों को मनाना भी शुरू कर दिया है। प्रदेश नेतृत्व भी लगातार इन पर नजर रखे हुए है। चुनाव संचालन समिति गठित भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव के लिए चुनाव संचालन समिति का गठन कर दिया है। 

भट्ट की अध्यक्षता में गठित इस समिति का संयोजक प्रदेश महामंत्री नरेश बंसल को बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष के अलावा समिति में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, महामंत्री संगठन संजय कुमार, प्रदेश महामंत्री खजानदास, गजराज सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, मेजर जनरल भुवन चंद खंडूडी (सेनि), डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह समेत सभी कैबिनेट मंत्री और प्रदेश पदाधिकारी शामिल हैं

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