गणतंत्र दिवस की परेड हर भारतीय का सीना चौड़ा कर देती है। दिल में देशभक्ति की भावना कुलांचें भरने लगती हैं। इसे देखने के लिए राजपथ पहुंचने की ललक हर किसी के दिल में होती है, लेकिन हर कोई वहां पहुंच नहीं पाता। एक तो आसानी से पास या टिकट नहीं मिलते, दूसरे राजपथ जाने के लिए सुरक्षा कारणों से लंबा रास्ता तय करना पड़ता है, लेकिन ज्यादा पहले की बात नहीं है, जब चांदनी चौक के लोग घर बैठे ही परेड का लुत्फ उठाते थे। तब राजपथ का परेड पुरानी दिल्ली की सड़कों से भी गुजरती थी। इसे देखने के लिए लोग न जाने कहां-कहां से पुरानी दिल्ली पहुंच जाते थे।
परेड देखने की तैयारियां काफी पहले से शुरू हो जाती हैं। गलियों और सड़कों को सजाया जाता था। हर जगह तिरंगे लहराते थे। सड़क के दोनों और तख्त और कुर्सियां डाली जाती थीं। चाट-पकौड़ी की भी दुकानें लगती थीं। फुटपाथ से लेकर छत और छज्जे लोगों से भरे होते थे। तकरीबन 11.30 बजे परेड चांदनी चौक की सड़क से गुजरती थी। लोग फूलों की बारिश करते थे। परेड के बाद तीन दिन तक लालकिला चांदनी चौक वालों कीमस्ती और घूमने का मुख्य ठिकाना होता था, क्योंकि झांकियां इसी में देखने के लिए रखी जाती थीं।
खारी बावली के तिलक बाजार में रहने वाले और रसायन के कारोबारी प्रदीप गुप्ता उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि तब वे स्कूल में पढ़ते थे। उनके पिता की कटरा अशर्फी में कपड़े की दुकान थी। ऐसे में कटरे के सामने ही फुटपाथ पर तख्त लग जाती थी। तब चांदनी चौक में अलग ही जश्न का माहौल होता था। घरों में अच्छे पकवान बनते थे। कूचे-कटरों के मुख्य द्वार को फूलों से सजाया जाता था। अच्छी तरह सफाई होती थी। सड़क किनारे जगह-जगह तिरंगे लगाए जाते थे। कागज की पतंग लटकाई जाती थी।
टॉउन हाल की तो विशेष सजावट और लाइटिंग होती थी। अच्छे कपड़े पहनकर लोग तख्तों पर आकर बैठ जाते थे। परेड के आने के समय तक इतनी भीड़ हो जाती थी कि कोई हिल भी नहीं सकता था। यही हाल कमोबेश छतों और छज्जों पर होता था। लोग एक-दूसरे पर गिरे जा रहे होते थे। खासकर, महिलाएं ऊपर से परेड को देखती थीं।
परेड अजमेरी गेट से नया बाजार, लाहौरी गेट हुए खारी बावली और फिर फतेहपुरी मस्जिद होते हुए चांदनी चौक में पहुंचती थी। इनमें टैंक, राकेट और युद्ध के अत्याधुनिक साज-सामानों के साथ राज्यों व मंत्रलयों की झांकियां होती थीं। इसी तरह से अन्य करतब दिखाते सेना के जवान भी गुजरते थे।
इस दौरान देशभक्ति के नारों से आसमान गूंजने लगता था। यह परेड लालकिला में जाकर संपन्न होता था। यह आजादी के बाद से ही चलता आ रहा था, पर वर्ष 2000 के आस-पास सुरक्षा कारणों से परेड का रास्ता बदल दिया गया। अब यह बहादुरशाह जफर मार्ग और सुभाष मार्ग होते हुए सीधे लालकिला पहुंचती है। हालांकि, अब भी परेड के बाद झांकियों को देखने को लालकिला में मौका मिलता है।
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