नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने देश में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन कराया है। इस अध्ययन में कुछ फसलों की पैदावार में कमी के साथ-साथ कृषि उत्पादन की दर के परिवर्तनशील होने और वनों के संघटन और निवल प्राथमिक उत्पादन में परिवर्तन होने का अनुमान लगाया गया है। सरकार द्वारा विभिन्न एजेंसियों की मदद से जलवायु परिवर्तन के उपशमन एवं अनुकूलन के लिए अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे हैं। यह जानकारी पर्यावरणए वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभारद्ध अनिल माधव दवे ने सोमवार को राज्य सभा में सदस्य रजनी पाटिल द्वारा पूछे गए एक तारांकित सवाल के जवाब में दी। उन्होंने बताया कि सरकार ने 2010 में ृृ जलवायु परिवर्तन और भारत रू 4 ग4 आकलन वर्ष 2030 के लिए एक सेक्टोरल एवं क्षेत्रीय विश्लेषणृृ नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्रए पश्चिमी घाटए तटीय क्षेत्र पूर्वोत्तर क्षेत्र ;देश के चार जलवायु संवेदी क्षेत्रद्ध में कृषिए जलए प्राकृतिक पारिप्रणलियों एवं जैव विविधता तथा स्वास्थ्य नामक भारतीय अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन किया गया था।
इस अध्ययन में कुछ फसलों की पैदावार में कमी के साथ.साथ कृषि उत्पादन की दर के परिवर्तनशील होने और वनों के संघटन और निवल प्राथमिक उत्पादन में परिवर्तन होने का अनुमान लगाया गया है। सभी क्षेत्रों अधिक वर्षा जैसी घटनाएं बढ़ने की सम्भावना है। हिमालयी क्षेत्र में जल उत्पादन में वृद्धि अनुमान है जबकि अन्य तीन क्षेत्रों में इसमें परिवर्तन होने की सम्भावना है। मलेरिया के नए क्षेत्रों में फ़ैलने और समय बीतने के साथ इसके फैलाव में वृद्धि होने की सम्भावना है।
सरकार ने जलवायु परिवर्तन और इससे सम्बंधित मुद्दों के निराकरण के लिए जून 2008 में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना ;एनएपीसीसीद्ध शुरू की थी। सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से भी अनुरोध किया गया है कि वे एनएपीसीसी के उद्देश्यों के अनुरूप राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना बनायें तथा उसमें जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित विशिष्ट मुद्दों को रेखांकित करें। अभी तक 32 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों ने अपनी राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना तैयार कर ली है। जीईएफए विश्व बैंक और जीसीएफ जैसी एजेंसियों के साथ समन्वय करके उनकी मदद से वहनीय विकास और जलवायु परिवर्तन के उपशमन एवं अनुकूलन के लिए अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे हैं।