लखनऊ। एम्स के लिए भूमि लिए जाने के साथ कूड़ाघाट स्थित 84 साल पुराना गन्ना शोध केन्द्र खत्म हो जाएगा। अपने आप में समृद्ध इतिहास समेटे इस शोध केन्द्र के खात्मे से गन्ना के क्षेत्र में नित नए शोध पर भी ग्रहण लग जाएगा। हालांकि संयुक्त निदेशक.गन्ना शोध परिषद.गोरखपुर डॉ सुचिता सिंह का कहना है कि इस संदर्भ में उन्हें कोई आदेश नहीं मिला है लेकिन शासन का जो निर्णय होगाए उसे गन्ना शोध परिषद मानेगा।
1932 में धान अनुसंधान केन्द्र के रूप में स्थापित हुआ था केन्द्र-
110 एकड़ में स्थित मौजूदा गन्ना शोध केन्द्र ब्रितानी हुकूमत में धान अनुसंधान केन्द्र के रूप में स्थापित हुआ था। हूकुमल क°थ् में ही 1938 में गन्ना अनुसंधान केन्द्र के रूप में परिवर्तित हो गया। देश की आजादी के बाद यह संस्था उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन गन्ना शोध केन्द्र के रूप में कायम रहा और यहां बड़े पैमाने पर गन्ना के क्षेत्र में एक से बढ़ कर शोध हुए और उत्कृष्ट प्रजातियां किसानों को मिलीं। 1977 में प्रदेश सरकार ने गन्ना अनुसंधान केन्द्र की रूपरेखा बदली और गन्ना शोध परिषद की स्थापना की। शोध परिषद बनने के साथ जहां का एक बार फिर इसकी रूपरेखा बदलीए वहीं गोरखपुर व सेवरही.कुशीनर का शोध केन्द्र शोध परिषद के अधीन हो गया। तब से अब तक शोध परिषद के अधीन कार्यरत रहा है।
राष्ट्रीय गन्ना परीक्षण भी हो जाएगा खत्म-
कूड़ाघाट गन्ना शोध परिषद में न केवल गन्ने पर शोध होता थाए प्रजातियां विकसित की जाती थीं बल्कि पूरे देश की गन्ना प्रजातियों का परीक्षण केन्द्र भी है। आल इण्डिया को.ऑर्डिनेटेड वेराइटल ट्रायल .आईसीआर के तहत पूरे देश में कहीं भी विकसित की जा रही गन्ना प्रजातियों का यहां परीक्षण भी होता था। गन्ना शोध क्षेत्र में देश स्तर पर प्रसिद्ध कोयम्बटूरए पुणे.महाराष्ट्र सहित विभिन्न प्रदेशों की नव विकसित प्रजातियों का यहां परीक्षण होता था बल्कि वहां के वैज्ञानिक व डॉयरेक्टर आकर कैम्प कर के अपने समक्ष परीक्षणों का सत्यापन भी करते थे।