लखनऊ। प्रदेश को मिलने वाला हजारों करोड़ रुपया फिलहाल टैक्स की अपील में फंसा हुआ है। प्रदेश सरकार को लखनऊ आगरा-एक्सप्रेस वे से लेकर मेट्रो जैसे विकास कार्यों के लिए धन की जरूरत है लेकिन अफसर और व्यापारियों की आपसी सेटिंग से कर वसूली के लटके मामलों की सुनवाई तक नहीं हो पा रही है। वाणिज्यकर विभाग में टैक्स वसूली के विवाद में 1375 करोड़ की धनराशि अटकी पड़ी है। अकेले कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ में 100 करोड़ की टैक्स वसूली विवादों में फंसी है। खास बात यह है कि विभाग के किसी भी जोन में अब तक वाणिज्यकर अधिकारियों के साथ एडीशनल कमिश्नर की बैठक तक नहीं हो सकी है जिससे व्यािपारियों से लम्बित विवादों का निपटारा हो सके। वाणिज्य कर विभाग की एमआईएस (अपील कोर्ट वाइस डिटेल ) रिपोर्ट चौंकाने वाली है। मौजूदा वर्ष के कर विवादों को छोड़ भी दिया जाए तो अभी तक वर्ष 2012, 2013 और 2014 के अपी़ल मामले लटके पड़े हैं। किसी भी जोन में अधिकारियों को अपील कमिश्नकर के बीच इस वर्ष बैठक ही नहीं हो सकी है जिससे हजारों करोड़ की धनराशि के मामलों को निपटाया जा सके। अकेले 2012 की 2422 अपीलों का निपटारा होना बाकी है। इसमें लखनऊ, गाजियाबाद, वाराणसी, मुजफ्फनगर, सहारनपुर, बिजनौर मुरादाबाद, बरेली और आगरा के कर संबंधी विवाद शामिल हैं। कुल मिलाकर सात न्यायिक संभाग में 100 से ज्यादा मामले और नौ न्याायिक संभाग में 100 से कम टैक्स अपीलें लटकी हैं। वर्ष 2014 की कुल 8744 अपीलें निस्तारण के लिए लम्बित हैं। इसमें 26 न्यायिक संभागों में प्रति संभाग 100 से कम अपील हैं जबकि 17 संभागों में 100 से 300 अपीलों की सुनवाई नहीं हुई है। आठ संभागों में 300 से ज्यादा अपीलों को अभी तक निपटाया नहीं जा सका है। लचर सरकारी रवैये के कारण अब तक अपीलों की संख्या 13883 हो गई है। इसके कारण कर के रूप में मिलने वाली 1375.90 करोड़ की धनराशि फंस गई है। अकेले कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ में 100 करोड़ से ज्यादा का टैक्स फंसा पड़ा है। कुल मिलाकर 10 लाख रुपये से अधिक के कर विवाद में 8315.54 करोड़ रुपये के अटकने से विभाग के होश उड़ गए हैं। टैक्स वसूली के विवाद के कारण ईमानदार व्यापारियों का कारोबार प्रभावित हो रहा है जबकि वाणिज्य कर विभाग की छवि पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। पूरे मामले को कर आयुक्त मुकेश मेश्राम ने गंभीरता पूर्वक लेते हुए अफसरों की क्लास लगाई है। उन्होंने सितम्बर से लेकर दिसम्बर तक न्यायिक टीमों को अपीलों के निस्तारण के निर्देश दिए हैं। वहीं गैर जिम्मेदार अफसरों पर गाज गिराने की तैयारी की जा रही है।