रेलवे के आला अफसरों के लिए इस्तेमाल होने वाले रेलवे सैलून अब आम आदमी को भी ये सेवा मुहैया कराएंगे. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आईआरसीटीसी को निर्देश दिए हैं कि जो सैलून अब तक रेलवे अधिकारियों के लिए इस्तेमाल होते है वे अब कामर्शियल होंगे. यानी आम लोगों को वो सेवा तो मिलेगी लेंगी उसके लिए शुल्क देना होगा.
खास तरह के डिब्बों को कहते हैं सैलून
IRCTC ने सैलून की पहली सेवा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से शुरू की थी. दरअसल, रेलवे के अधिकारियों के लिए अंग्रेजों के जमाने से ही खास तरीके के कोच बनाए गए थे, जिनमें ड्राइंग, डाइनिंग, किचन और दो बेडरूम होते हैं. इस तरह के खास डिब्बों को सैलून कहा जाता है. इसमें हर एक बेडरूम में अटैच्ड टॉयलेट-बाथरूम होते हैं. रेल लाइन पर यह चलते फिरते लग्जरी होटल की तरह होते हैं.
क्यों बनाए गए सैलून
मार्च में आईआरसीटी ने भारत का पहला एयर कंडिशनर सैलून खोला था. शुरुआती दिनों में ये बस रेलवे अधिकारियों के लिए ही था. ऐसे सैलून में आप दो परिवार के साथ रह सकते हैं. रेलवे के पास 336 ऐसे सैलून हैं. जिसमें 62 में एयर कंडीशन है.
अंग्रेजों के जमाने में जब देश के दूरदराज के इलाको में रेल लाइन बिछाई जा रही थी, और वहां ठहरने का समुचित इंतजाम नहीं होता था, तो इस समस्या के समाधान के लिए रेलवे में सैलून का इंतजाम किया गया. आजादी के बाद यह व्यवस्था उसी तरह से जारी है. देश भर में सभी रेलवे डिवीजनों में डीआरएम और एडीआरएम के लिए सैलून की व्यवस्था रहती है. रेल मंत्री बनने के बाद पीयूष गोयल ने सैलून की पॉलिसी में सुधार किया गया और कहा कि जरूरी होने पर ही सैलून का इस्तेमाल किया जाए. साथ ही खाली खड़े रेलवे सैलून को आम यात्रियों को देने की नीति भी बनाई गई.
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