देश के चर्चित रेल टेंडर घोटाला (आइआरसीटीसी घोटाला) मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी तथा बेटे व बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को बड़ी राहत मिली है। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें सीबीआइ व ईडी के मामलों में नियमित जमानत दे दी है। सोमवार को कोर्ट में लालू यादव की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई, जबकि राबड़ी व तेजस्वी सदेह उपस्थित थे।
कोर्ट ने नियतिम जमानत के साथ यह शर्त लगाई है कि वे बिना इजाजत देश से बाहर नहीं जा सकते। इस मामले में लालू परिवार के तीन सदस्यों के साथ राजद के राज्यसभा सांसद प्रेमचंद गुप्ता और उनकी पत्नी सरला गुप्ता भी आरोपित हैं। मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी को होगी।
जमानत के बाद तेजस्वी ने कही ये बात
नियमित जमानत के बाद तेजस्वी यादव ने एक बार फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तथा बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर मिलीभगत कर लालू परिवार को बेवजह फंसाने का आरोप लगाया। तेजस्वी ने कहा कि रेल टेंडर घोटाला में लालू यादव व उनके परिवार को किस तरह फंसाया गया, इसका खुलासा तो मुकदमा दर्ज करने वाली सीबीआइ के तत्कालीन निदेशक ही कर चुके हैं। इस साजिश में प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी, सुशील मोदी व नीतीश कुमार शामिल रहे।
पहले मिली थी अंतरिम जमानत
मालूम हो कि इससे 20 दिसंबर को पटियाला हाउस कोर्ट ने लालू यादव को अंतरिम जमानत दी थी। इस मामकले में तेजस्वी और राबड़ी देवी को कोर्ट ने छह दिसंबर को ही अंतरिम जमानत दे दी थी।
रेलवे टेंडर घोटाला मामला, एक नजर
वर्ष 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने रेलवे के पुरी और रांची स्थित बीएनआर होटल के रखरखाव आदि के लिए आइआरसीटीसी को स्थानांतरित किया था। सीबीआइ के मुताबिक, नियम-कानून को ताक पर रखते हुए रेलवे का यह टेंडर विनय कोचर की कंपनी मेसर्स सुजाता होटल्स को दे दिये गये थे।
आरोप के मुताबिक, टेंडर दिये जाने के बदले 25 फरवरी, 2005 को कोचर बंधुओं ने पटना के बेली रोड स्थित तीन एकड़ जमीन सरला गुप्ता की कंपनी मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग कंपनी लिमिटेड को बेच दी, जबकि बाजार में उसकी कीमत ज्यादा थी।
जानकारी के मुताबिक, इस जमीन को कृषि जमीन बताकर सर्कल रेट से काफी कम पर बेच कर स्टांप ड्यूटी में गड़बड़ी की गयी थी और बाद में 2010 से 2014 के बीच यह बेनामी संपत्ति लालू प्रसाद की पारिवारिक कंपनी लारा प्रोजेक्ट को सिर्फ 65 लाख रुपये में ही दे दी गयी, जबकि उस समय बाजार में इसकी कीमत करीब 94 करोड़ रुपये थी।
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