जगदलपुर। तमाम कोशिशों के बावजूद बस्तर के मछली उत्पादक मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। 98 फीसदी मछली आंध्र से आ रही है। संभाग के पांच जिलों में प्रति सप्ताह 1300 क्विंटल मछली की खपत हो रही है। जगदलपुर के लोग ही प्रतिदिन 5 क्विंटल मछली का मांस चट कर जाते हैं।
संभागीय मुख्यालय के मछली व्यापारी ही बस्तर सहित कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर,दंतेवाड़ा जिले के विभिन्न बाजारों को भिजवाते हैं। शहर के सबसे बड़े मछली व्यापारी उतम डे ने बताया कि सप्ताह में दो बार 6 टन मछली बचेली, किंरदुल, दंतेवाड़ा, किरंदुल, बीजापुर, भैरमगढ़ तथा भोपालपटनम भेजा जाता है, वहीं प्रतिदिन पांच क्विंटल मछली नारायणपुर व कोंडागांव पहुंचायी है। जगदलपुर शहर में ही रोज पांच च्ंिटल मछली बिक जाती है।
बाहर से अधिक माल आता है। शहर के संजय बाजार मछली मार्केट में इन दिनों मोंगरी मछली 800 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है। यह मछली बंगाल में ज्यादा पाली जाती है, वहां यह मछली चीतल मछली के नाम से पहचानी जाती है। बंगाल के अलावा यह छग के दल्लीराजहरा के झरनदल्ली तालाब में ही पायी जाती है इस मछली में कांटा अधिक होने के बाद भी इसकी मांग अधिक होती है। इन दिनों छोटी मोहरी 300 तो बड़ी 800 रूपये प्रतिकिलो के भाव से बिक रही है।
परिवहन खर्च अधिक होने के चलते यहां मछली महंगी है। फार्म वाली मछलियों के अलावा देशी मछलियों की मांग अच्छी है किंतु मत्स्य उत्पादन की दिशा में वांछित प्रयास नहीं हो रहे हैं, बताया जाता है कि मछलियों की कुल खपत का 98 प्रतिशत हिस्सा आंध्रप्रदेश के मत्स्यपालन पूर्ति करते हैं, इधर जिले के 300 तालाबों में मछली पालन होता है, लेकिन उत्पादन बेहद कम है।