जगदलपुर। बस्तर के जंगलों तथा सुनसान क्षेत्रों में यहां वहां पड़ी दुर्लभ तथा बेशकीमती मूर्तियां जिनपर तस्करों की नजर है। इनकी सुरक्षा न होने से मूर्तियां पार हो रही हैं। मूर्तियों की सुरक्षा तथा पुराने मंदिरों की देखभाल न तो विभाग कर रहा है और न ही स्थानीय प्रशासन इसके लिए रूचि ले रहा है। अधिकांश मूर्तियों का ब्योरा भी इनके पास नहीं है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार ने पुरानी मूर्तियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षागार्ड व सीसीटीवी लगाने की बात कही है। यहां के पुरातात्विक धरोहर को सुरक्षित करने विभाग के पास कोई प्रोजेक्ट नहीं है। इसी बीच दंतेवाड़ा से दो दुर्लभ मूर्तियों की चोरी हो गई है। ऐसे में मूर्ति तस्करों से बचाने में सवाल उठने लगे हैं। बस्तर संभाग में हर 15 किमी की दूरी में मूर्तियां बिखरी हुई हैं। बारसूर का गणेश, मामा-भांजा, चंद्रादित्य मंदिर, दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी और भैरव मंदिर, नारायणपाल का नारायण मंदिर, बस्तर का शिव मंदिर ही केंद्र के तहत वहीं गढ़धनोरा, भोंगापाल, केशरपाल, चित्रकोट, शिवमंदिर, बारसूर का 32 मंदिर, गुमड़पाल, छिंदगांव का मंदिर ही छग पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। पंरतु कांकेर से लेकर ईंजरम-कोंटा तथा धनपूंजी से लेकर भद्रकाली तक बिखरी पड़ी मूर्तियों को किसी ने संरक्षण प्रदान नहीं किया है। बीजापुर जिले के नलसनार के पास केतुलनार गांव में मरीनदी से निकाली गई 12 मूर्तियों को ग्रामीणों ने झोपड़ी में सहेज कर रखा है। इसकी जानकारी पुरातत्व विभाग को नहीं है। जबकि यहां की मूर्तियों को 12वीं शताब्दी का माना जा रहा है।
पुरातत्व विभाग को ज्ञात है कि तुमनार में पुरानी मूर्तियों का भंडार है, लेकिन किसी भी मूर्ति को संग्रहालय लाने का प्रयास नहीं किया गया। यहां से गणेश जी की एक प्रतिमा को कुछ लोगों ने गायब करने का प्रयास किया था, जिसे गीदम के पास गुमरगुंडा आश्रम पहुंचाया गया है।
नारायणपाल के पास ग्राम पूर्वी टेमरा के जंगल में 11-12वीं शताब्दी की 14 प्रतिमाएं वर्षों से उपेक्षित पड़ी हैं। इनमें गजलक्ष्मी व स्कंधमाता की मूर्ति दुर्लभ है। इन मूर्तियों की जानकारी 1995 से पुरातत्व विभाग को है, लेकिन इन मूर्तियों की सुरक्षा के लिए विभाग ने फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं की है।