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भाजपा, बसपा की लड़ाई से कांग्रेसी गदगद, हाथ थामने के लिए बेताब बसपाई

कानपुर। दो दिन पहले भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष ने बसपा सुप्रीमो को ऐसे गाली दी जो बसपा के कद्दावर नेताओं के दिल में जा लगी। गाली का जवाब गाली से दिया गया, इससे आम जनता के मुद्दे पीछे छूट गए। नेता अब नेतागिरी छोड़कर गालीगिरी पर उतर आए हैं। जिससे लोगों पर जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है। ऐसे में मण्डल के कांग्रेसी नेता गदगद होकर इसका फायदा पूरी तरह से उठाने में जुट गए। तो वहीं बसपाई भी आहत होकर हाथ थामने के लिए बेताब हो उठे। गुजरात में दलितों की पिटाई के बाद भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की विवादित टिप्पणी से भाजपा पर जिस तरह से बसपा ने अक्रामक रूख अपनाया तो एक समय लग रहा था कि बसपा को चुनावी फायदा हो सकता है। लेकिन बसपा की इसी अक्रामकता से भाजपा को पलटवार करने का मौका मिल गया और इन दोनों की लड़ाई से मण्डल केे कांग्रेसी नेता खुशी से झूमे नहीं समा रहे है। इसके अलावा इसी बीच कांग्रेस की 27 साल यूपी बेहाल बस यात्रा का समापन भी कानपुर में होने वाली है। जिससे कांग्रेस इन दोनों की लड़ाई का फायदा उठाने के लिए मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए पैदल यात्रा से लेकर मुख्यमंत्री उम्मीदवार शीला दीक्षित का जनसभा संबोधन कार्यक्रम आयोजित कर दिया। सूत्रों की माने तो इसी जनसभा में मण्डल के कई बसपा के दिग्गज व पूर्व बसपा नेता कांग्रेस का हाथ थाम सकते है। हालांकि अभी कांग्रेस इसके पत्ते अभी नहीं खोली है। नगर अध्यक्ष हर प्रकाश अग्निहोत्री ने इस बात के जरूर संकेत दिए कि अमर्यादित शब्दों से बसपा के कुछ नेता आहत है। उन्होंने कहा कि जो भी साफ स्वच्छ छवि का नेता आएगा उसका पार्टी बराबर स्वागत करेगी। फिलहाल पार्टी का ध्यान पूरी तरह से यूपी फतह करने में लगा हुआ है।

पीके का प्रबंधन से कायल है नेता-

कांग्रेस के रणनीतिकार पीके (प्रशांत किशोर) ने जिस तरह प्रदेश के आगामी चुनाव को देखते हुए नेताओं को जिम्मेदारी दी है। उससे बसपा सहित कई पार्टियों के नेता कायल है। बताते चलें कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार से दूर रहने वाली कांग्रेस इस बार शीला दीक्षित को उम्मीदवार बनाकर ब्राह्मण कार्ड खेला। तो वहीं स्थानीय नेता प्रमोद तिवारी को भी तरहीज देते हुए चेयरमैन कमेटी में जगह दी। इसके साथ ही वरिष्ठ उपाध्यक्षों में सामान्य, ओबीसी, दलित, व अल्पसंख्यकों को भी साधने की कोशिश की गई। प्रदेश प्रभारी व प्रदेश अध्यक्ष में भी ओबीसी, अल्पसंख्यक कार्ड खेला गया। पीके के इस प्रबंधन से राजनीतिक नेताओं की नींद खराब हो गई। यह अलग बात है कि चुनाव में प्रबंधन क्या गुर खिलाता है वह तो समय ही बताएगा। लेकिन विपक्षी नेताओं के लिए इस समय यह प्रबंधन परेशानी का सबब जरूर बना हुआ है। जिससे तमाम विपक्षी राजनेता इन दिनों कांग्रेस की पल-पल की खबर ले रहे है।

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