नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्वा मेट्रो लाइन न केवल निर्माण में उत्कृष्ट है, बल्कि निर्माण कास्ट के मामले में भी यह देश की सबसे सस्ती मेट्रो है। बाकी जगह मेट्रो लाइन के निर्माण पर न्यूनतम 170 से 180 करोड़ रुपये प्रति किमी खर्च हुए हैं, जबकि नोएडा-ग्रेटर नोएडा मेट्रो लाइन पर मात्र 150 से 160 करोड़ रुपये प्रति किमी खर्च हुआ है। इससे परियोजना पर नोएडा मेट्रो रेल कारपोरेशन (एनएमआरसी) की दस से पंद्रह फीसद बचत हुई है। कुछ समय पहले मेट्रो रूट का तकनीकी रूप से परीक्षण किया गया था। संरक्षा आयुक्त ने मेट्रो के निर्माण कार्य को उच्च कोटि का बताते हुए इसकी तारीफ की थी। सबसे खास बात यह रही है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा के बीच 29.7 किमी लंबे ट्रैक का निर्माण मात्र साढ़े तीन वर्ष में पूरा कर लिया गया। इतनी तेजी से बाकी शहरों में मेट्रो ट्रैक का निर्माण नहीं हुआ।
यहां पर बता दें कि ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क चार से नोएडा के सेक्टर 51 तक मेट्रो ट्रैक बनाया गया है। निर्माण की कवायद पिछले 20 वर्ष से चल रही थी, लेकिन 2015 में प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन व सीईओ रमा रमण के कार्यकाल में इसकी नींव रखी गई। दरअसल, इस परियोजना से सर्वाधिक फायदा ग्रेटर नोएडा को होना है, जबकि, अधिक खर्च नोएडा का हुआ है। इसी वजह से यह परियोजना लंबे समय तक अटकी रही थी। रमा रमण ने दोनों प्राधिकरणों का कार्यभार मिलते ही उन्होंने सबसे पहले इस नोएडा, ग्रेटर नोएडा मेट्रो को मंजूरी दी।
शुरुआत में निर्माण के लिए करीब 57 सौ करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था। बाद में इसे घटाकर करीब 51 सौ करोड़ रुपये किया गया। संतोष यादव के एनएमआरसी का एमडी बनने पर उनके नेतृत्व में मेट्रो ट्रैक के निर्माण ने तेजी पकड़ी। परियोजना के तेज निर्माण की वजह से इसकी लागत को नियंत्रित करने में सहायक हुआ। वहीं परियोजना का कार्य निर्धारित समय पर भी हुआ। खर्च भी 51 सौ करोड़ रुपये से घटकर नीचे आ गया।
उनके बाद नोएडा प्राधिकरण के सीईओ आलोक टंडन एनएमआरसी के एमडी भी बने। उन्होंने भी अपने कार्यकाल में निर्माण कार्य की गति बरकरार रखते हुए निर्धारित समय पर कार्य पूरा कराया। संरक्षा आयुक्त इस मेट्रो ट्रैक को सिविल इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण बता चुके हैं। उन्होंने उम्दा निर्माण कार्य के लिए परियोजना निदेशक व चीफ इंजीनियर की खूब तारीफ की थी।
राजनीतिक रंग से बचाकर रखा गया मेट्रो को
मेट्रो का एक्वा रंग इसे राजनीति से बचाने के लिए रखा गया था। इसके पीछे एनएमआरसी अधिकारियों ने काफी माथा पच्ची की थी। दिल्ली मेट्रो की लाइनें अलग-अलग रंग से पहचानी जा रही थी। उत्तर प्रदेश में बनने वाली मेट्रो के रंग पर राजनीतिक रंग न चढ़े इस लिए पानी के रंग यानी एक्वा को चुना गया।
सौर ऊर्जा के लिए स्टेशन की विशेष डिजायन
एक्वा मेट्रो को पर्यावरण हितैषी बनाने के लिए स्टेशन के डिजायन भी खासतौर से तैयार किए गए। स्टेशनों को घुमावदार न बनाकर सीधा रखा गया, ताकि स्टेशन की छत पर लगे सौर पैनल पर सूर्य की रोशनी पर्याप्त आए। सौर पैनल से कुल दस मेगावॉट बिजली उत्पादित होगी। यह बिजली मेट्रो के लिए ही उपयोग होगी।
ऊंचाई कम करके 120 करोड़ की बचत की
एक्वा मेट्रो का निर्माण पिलर पर हुआ है। सफीपुर गांव के पास मेट्रो ट्रैक की ऊंचाई करीब-करीब भूमितल के बराबर है। गांव के समीप से 400 केवी की हाइटेंशन लाइन क्रास कर रही है। मेट्रो की ऊंचाई बढ़ने से लाइन को स्थानांतरित करना पड़ता है। इंजीनियरों ने अपने कौशल से यहां ट्रैक की ऊंचाई कम की। इससे एनएमआरसी को 120 करोड़ रुपये की बचत हुई।
ग्रेटर नोएडा से नोएडा व दिल्ली की राह होगी आसान
नोएडा, ग्रेटर नोएडा मेट्रो के संचालन के बाद यहां के निवासियों को इसका सर्वाधिक लाभ होगा। इससे नोएडा व दिल्ली जाना काफी आसान हो जाएगा। अभी तक लोगों को निजी वाहन या रोडवेज की बसों का सहरा लेकर गंतव्य पर जाना पड़ता है। मेट्रो उनके सफर को और सुगम बना देगी। ग्रेटर नोएडा वासी पहले नोएडा और बाद में वहां से दिल्ली के लिए मेट्रो पकड़ सकते हैं।
परी चौक के जाम से मिलेगी निजात
ग्रेटर नोएडा के परी चौक पर हर रोज लंबा जाम लगता है। शहर में किसी भी दिशा से आने वाले वाहन ग्रेटर नोएडा में प्रवेश के समय परी चौक से जरूर गुजरते हैं। वाहनों का दबाव बढ़ जाने की वजह से जाम लगता है। मेट्रो के संचालन के बाद लोग निजी वाहनों से आना जाना कम कर देंगे। इससे परी चौक पर वाहनों का दबाव भी कम होगा और जाम से निजात मिल सकेगी।