लखनऊ। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने पिछली 29 जनवरी को सपा-कांग्रेस गठबंधन को अमान्य करते हुए यह तक कह दिया था कि वह उसके लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे।
लेकिन दो दिन बाद ही वह अपनी बात से पलट गए और बोले: मैं पहले शिवपाल के लिए प्रचार करूंगा, उसके बाद अखिलेश के लिए।
उन्होंने सारे भम्र दूर करते हुए यह भी कह दिया कि वह कांग्रेस के लिए भी प्रचार करेंगे। समाजवादी पार्टी के पिछले साल के अंतिम प्रहर के झंझट में जो कुछ हुआ, उसने मुलायम सिंह यादव की रीति-नीति को आम लोगों की समझ से परे बना दिया।
पहले कभी मुलायम सिंह यादव को समझना इतना मुश्किल नहीं था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कई मौकों पर अपने रुख बदले हैं लेकिन जो कुछ उन्होंने अब 78 साल की उम्र पार करने के बाद किया, वह पहले कभी नहीं हुआ था।
ऐसा क्या हुआ कि वह बार-बार अपने बयानों से पलटे, बार- बार उन्होंने अपने तेवर बदले, बार-बार दिशाएं बदलीं और अपनी सारी जानी-पहचानी सख्ती भुलाकर लगातार ‘मुलायम’ होते चले गए? जवाब एक ही है वह अपने पहलू में अपने भाई और अपने बेटे दोनों को रखकर चलना चाहते रहे हैं लेकिन जब दोनों में से एक को पसंद करने का मुकाम आया तो बेटे के साथ हो लिए और भाई को बिना ऐसा कहे किनारे कर दिया।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शिवपाल यादव को अब तक यह बात समझ में आ गई होगी कि परिवार में और राजनीति में भी बेटे से बड़ा कुछ नहीं होता।
जो कुछ अब तक कांग्रेस में, अकाली दल में, शिवसेना में, द्रविड़ मुनेत्र कषगम में, राष्ट्रीय लोकदल में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में, टिकट वितरण के समय भारतीय जनता पार्टी में और यहां वहां हर राजनीतिक कुनबे में होता रहा है, वही तो आखिर समाजवादी पार्टी में हुआ है।
समाजवादी पार्टी की राजनीति में पिछले चार महीनों में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन जब भी मुकाबला अंतिम दौर में पहुंचा, अखिलेश को स्वर्ण पदक मिला और शिवपाल को पदक तालिका के पायदान पर कहीं जगह नहीं मिली।
एक बार, बस एक बार पिछले साल की 24 अक्तूबर को उनका कद उस समय कुछ बढ़ा था जब लखनऊ में हो रहे पार्टी सम्मेलन में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से शिवपाल के पैर छूने को कहा था और उन्होंने ऐसा किया भी था, हालांकि उसी सम्मेलन में इससे पहले शिवपाल ने एक मौके पर अखिलेश के हाथों से माइक छीन लिया था।