श्री गोविंदराम सेकसरिया इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसजीएसआईटीएस) ने अपने सैटेलाइट पर काम शुरू कर दिया है। अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने के लिए पहले यहां अर्थ स्टेशन बनाया जा रहा है जहां से सैटेलाइट के स्पेस में जाने के बाद संपर्क रखा जाएगा। सैटेलाइट से प्रदेशभर में हो रहे विकास कार्यों पर निगरानी रखी जा सकेगी। अमरकंटक से लेकर गुजरात तक बहने वाली नर्मदा के पानी के स्तर पर पल-पल नजर रहेगी। साथ ही जंगल में प्लांटेशन का सही आंकड़ा बताया जा सकेगा।
एसजीएसआईटीएस सैटेलाइट तैयार करने वाला प्रदेश का पहला इंस्टिट्यूट है। खास बात यह है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से सैटेलाइट बनाया जा रहा है। इसमें विश्व बैंक से फंडिंग और सरकार से अनुदान लिया जा रहा है। फिलहाल अर्थ स्टेशन और सैटेलाइट के लिए 50 लाख रुपए मिल चुके हैं, जिससे इंस्टिट्यूट ने जरूरी उपकरण खरीदे हैं। दिसंबर 2019 तक अर्थ स्टेशन तैयार हो जाएगा, जिसकी टेस्टिंग इंस्टिट्यूट अपने स्तर पर करेगा। हालांकि इसरो के वैज्ञानिक भी इस दौरान होंगे मगर सैटेलाइट बनने के बाद बेंगलुरु स्थित इसरो में परीक्षण होगा। यहां सैटेलाइट सही पाए जाने पर इसे लॉन्चिंग के लिए भेजा जाएगा, यह निर्णय सरकार करेगी।
हर साल की मिलेगी इमेज
रिसर्च के अलावा सैटेलाइट भेजने का मकसद यह पता लगाना है कि प्रदेशभर के प्रमुख शहरों में विकास कार्यों से संबंधित क्या बदलाव आए। सैटेलाइट के जरिए डेटा इकट्ठा किया जाएगा। इंस्टिट्यूट के सेंटर फॉर रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट कम्युनिकेशन के इंचार्ज प्रो. सिद्धार्थ के सोनी के मुताबिक सैटेलाइट से सबसे ज्यादा फायदा इंस्टिट्यूट के विद्यार्थियों को मिलेगा। रिसर्च वर्क में इन विद्यार्थियों की मदद ली जाएगी। सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के विकास पर नजर रखना है।
शुरुआत में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने तीन प्रमुख क्षेत्र में काम करने पर जोर दिया था। इनमें नर्मदा का जलस्तर, किनारों पर प्लांटेशन की स्थिति और जंगल में विभिन्ना स्थानों पर लगे अलग-अलग प्रजातियों के पौधों का डेटा इकट्ठा करना था। यह काम सैटेलाइट इमेज के आधार पर होना है। सैटेलाइट से प्रत्येक वर्ष की इमेज मिलेगी। तकनीकी भाषा में इसे ‘चेंज डिटेक्शन’ कहते हैं।
नगर निगम का बढ़ेगा राजस्व
सैटेलाइट से इंदौर सहित प्रदेशभर के नगर निगमों को राजस्व बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। यह प्रॉपर्टी से जुड़ा डेटा इकट्ठा करेगा। सैटेलाइट से ली गई इमेज से पता चलता रहेगा कि कहां खाली प्लॉट हैं, कहां नया निर्माण चल रहा है, कौन सा पुराना मकान गिराकर नया बना है। किस मल्टी में कितने फ्लैट हैं और कौन इनका मालिक है।
आएगा पांच करोड़ का खर्च
सैटेलाइट बनाने में लगभग पांच करोड़ का खर्च बताया जा रहा है। मप्र में सरकार बदलने से इस खर्च को जुटाने को लेकर इंस्टिट्यूट के सामने परेशानी खड़ी होने लगी है। सरकार की तरफ से सैटेलाइट के लिए 40-50 फीसदी तक राशि आना है, जिसमें थोड़ा समय लग सकता है। हालांकि इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डॉ. राकेश सक्सेना भी इस दिशा में प्रयास करने में लगे हैं।