इस बार आम चुनावों (Loksabah Election) में हार-जीत का दारोमदार विपक्षी एकजुटता पर टिका है। लेकिन चुनाव से पहले ही विपक्षी एकता में खलल पड़ता दिख रहा है। यूपीए घटक जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी (Kumaraswamy) ने तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पीएम उम्मीदवारी की पैरवी कर इस मुद्दे को नई हवा दे दी है।
कांग्रेस के लिए उनका बयान झटका है तो विपक्षी एकता में भी अजीब स्थिति पैदा हो गई है। अभी तक माना जा रहा था कि नेतृत्व को लेकर मतभेद यूपीए के साथ खड़े दलों तक ही सीमित है। लेकिन इससे साफ हो गया है कि यूपीए के घटकों में भी एकराय नहीं है।
नाराजगी दिखाई
कांग्रेस कर्नाटक में जेडीएस के साथ सरकार चला रही है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि उसके रिश्ते वैसे ही होने लगे हैं जैसे भाजपा और शिवसेना के हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री कुमारस्वामी से यह उम्मीद थी कि वह नेतृत्व के सवाल पर कांग्रेस के साथ खड़े दिखते, या फिर चुप रहते। लेकिन ममता का समर्थन करके उन्होंने अपनी नाराजगी फिर से प्रकट की है जो उन्हें कर्नाटक में गठबंधन सरकार में कांग्रेस के कथित तौर-तरीकों से है।
बढ़ेगी स्वीकार्यता
राजनीतिक विश्लेषकों के निश्चित रूप से अनुसार रैली की सफलता और कुमारस्वामी के बयान से ममता बनर्ती की विपक्ष के नेता के रूप में स्वीकार्यता बढ़ेगी। दरअसल, पहली बार विपक्ष के किसी दल ने ममता का इस प्रकार समर्थन किया है। दूसरे, ममता इस तीसरे मोर्चे की धुरी बनना चाहती हैं, यह उन्होंने कई बार परोक्ष रूप से प्रदर्शित किया है। कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं करना, विपक्ष को एकजुट करने के समय-समय पर प्रयास करना तथा कोलकात्ता में महारैली का आयोजन इसी मुहिम का हिस्सा है।
कई दावेदार
आज की तारीख में विपक्ष में नेतृत्व को लेकर स्थिति यह है कि कम से तीन दावेदार सामने आ चुके हैं। चूंकि कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होगी इसलिए उसकी स्वभाविक दावेदारी है। द्रमुक ने राहुल गांधी के नेतृत्व का समर्थन भी किया है। उधर, सपा प्रमुख अखिलेश ने इशारों ही इशारों में बसपा प्रमुख मायावती का नाम आगे सरकाया है।
पवार की चुप्पी
विपक्ष के कई महत्वपूर्ण घटकों के रुख स्पष्ट नहीं है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने नेतृत्व के सवाल पर यह कहकर चुप्पी साधी है कि यह चुनाव बाद तय होगा। हालांकि एक मौके पर उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तारीफ की। लेकिन विपक्षी राजनीति में गाहे-बगाहे पवार को भी पीएम की दौड़ में माना जाता है। इसी प्रकार बीजद प्रमुख नवीन पटनायक, तेदेपा के चंद्रबाबू नायडू और टीआरएस प्रमुख केसी राव भी तीसरे मोर्चे के बड़े नेताओं के रूप में उभरे हैं। हालांकिअभी तक किसी ने उन्हें पीएम का दावेदार नहीं बताया है।