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एक कदम पुलिस, तो दूसरे कदम कातिल

download (7)लखनऊ। अपराध एवं अपराधियों पर नकेल कसने के लिए मुखबिर तंत्र ही नहीं पुलिस अत्याधुनिक उपकरण का भी इस्तेमाल करती है, लेकिन बेखौफ हत्यारे तथा लुटेरे अपनी मकसद में कामयाब होकर भाग निकलते हैं। इनकी धरपकड़ के लिए भारी मात्रा में पुलिस बल जगह-जगह जाल बिछाकर होमवर्क करती है, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता। किसी समय में आतंक का पर्याय बने श्रीप्रकाश शुक्ला एवं रमेश कालिया के अंत होने के बाद उभरे नई उम्र के खूंखार अपराधी संगीन वारदात कर पुलिस को खुली चुनौती दे रहे हैं। जरायम की दुनियां में कदम रखने वाले युवा पीढ़ी अपनी शौक या फिर किसी महिला मित्र का फरमान पूरा करने के लिए अपने जीवन को अपराध के दलदल में पहुंच जा रहे हैं। यही नहीं जानकार सूत्रों की मानें तो जेल में बंद चर्चित अपरधी वहीं से अपने आतंक का बीज बो रहे हैं, जो बाहर उनकी फसल लहलहा रही है। इसका सहज अंदाजा उस समय से लगाया जा सकता है जब पांच मार्च को विकासनगर क्षेत्र में नामी-गिरामी नाम मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह और उसके मित्र संजय मिश्र को बाइक सवार बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोनों को चंद मिनट में मौत की नींद सुला दिया था। इस दोहरे हत्याकांड को लेकर पुलिस प्रशासन को अभी भी आंशका है कि गैंगवार को लेकर मुन्ना बजरंगी बंदूक कभी भी गोलियां उगल सकती हैं। क्योंकि पुलिस को उस वक्त सदेंह हुआ था जब मुन्ना बजरंगी ने हत्यारों तक जल्द पहुंचने के लिए अल्टीमेटम दिया था और साफ कहा था कि पुलिस कातिलों न पकड़ पाये, तो वह अपने स्तर से देख लेने की हैसियत रखता है।

सिलसिलेवार वारदात, रोकने में पुलिस नाकाम –
मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह एवं उसके साथी संजय मिश्रा की हत्या हो या फिर हजरतगंज के डीआरएम कार्यालय परिसर में शुक्रवार को रेलवे के टेंडर को लेकर ठेकेदार आशीष पांडेय उर्फ नाटू की दिनदहाड़े हुई गोली मारकर हत्या। ये तीन हत्याएं इस बात का सुबूत देने के काफी है। इनकी जान किसी और मामले में नहीं बल्कि एक दूसरे को देख लेने में गई। वर्चस्व की जंग में हो रही ताबड़तोड़ हत्याएं पुराने जख्मों को ताजा कर दिया था। पुलिस ठेकेदार आशीष पांडेय के हत्यारों को पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजा,लेकिन विकासनगर पुलिस अभी तक कातिलों की गर्दन दबोचने में नाकाम है। दागी पुलिसकर्मियों का गठजोड़ इस कदर हावी हुआ कि इससे पहले भी शूटर ने दो डॉक्टरों के सीने में गोली दागकर मौत की नींद सुलाकर पुलिस को खुली चुनौती दे चुके है। यहां पर पूर्व में भी अपनी ऊंची और राह का कांटा हटाने तथा गैंगवार की जंग में कईयों के खून बह चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि पुलिस इन पर शिकंजा कसने के लिए मन बनाती है, लेकिन उनकी हनक के आगे दो कदम पीछे हटने के लिए मजबूर हो जाती है। पुष्पजीत हत्याकांड के मामले में जहां मुन्ना बजरंगी ने साफ तौर पर कहा था कि पुलिस अगर कातिलों तक नहीं पहुंच पा रही है तो वह अपने स्तर से देखेंगे। वहीं जिस तरह से बेखौफ बदमाशों ने राजधानी में ताबड़तोड़ वारदात की, इससे यही साबित हो रहा है कि अपराधियों ने मिलकर सियासी गठजोड़ में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं।

टूटा मुखबिर तंत्र, संर्विलांस फेल-
बीते दशक के दौर पर गौर करें तो लाल पगड़ी वालों की बेहद हनक थी और गांव या फिर शहर की गलियों में दाखिल होते ही चर्चा का विषय बन जाते थे, लेकिन इस दौर की बात करें तो लाल पगड़ी तो दूर छावनी बन जाये, लेकिन किसी के सेहत पर कोई असर नहीं दिखता। पुलिस की पकड़ थी और वह बड़े से बड़े अपराधियों की गर्दन दबोच कर सलाखों के पीछे भेजा। वजह साफ है कि उस वक्त पुलिस के मुखबिर मजबूत और भरोसे मंद थे, लेकिन इस दौर में देखा जाये तो शायद मुखबिर को पुलिस से भरोसा उठ जा चुका है। पहले पुलिस के पास मुखबिरों का नेटवर्क था, लेकिन सर्विलांस के दौर में यह नेटवर्क टूट गया। देखा जाये तो अब न तो पहले जैसे पुलिसवाले रहे जो अपना मुखबिर तंत्र संभाल कर रखें और न ही अत्याधुनिक उपकरण बहुत भरोसेमंद है। क्यों कि नई उम्र के अपराधी भी इस तकनीकि को बखूबी समझ चुके हैं,इसलिए वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करते है। राजधानी में हुई कई ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर अपराधी अपराध कर भाग निकले और पुलिस उनकी लोकेशन तलाशती रह गई। उदाहरण के तौर पर हसनगंज में लूट के दौरान तीन लोगों की हत्या और विकासननगर में दो तथा गोमतीनगर में एक युवक की हत्या कर हत्यारे फुर्र हो गये और पुलिस सूचीबद्ध बदमाशों के मोबाइल फोन की कुंडली खंगालती रह गई। फिलहाल पुलिस का टूटा मुखबिर तंत्र ही पुलिस के लिए कमजोरी का सुबूत बनता जा रहा है।

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