लखनऊ। कला और विज्ञान दो अलग विषय हैं लेकिन हैं एक दूसरे के पूरक। इस बात को साबित कर दिखाया लखनऊ विश्वविद्यालय की फाइन आट्र्स फैकल्टी के विद्यार्थियों ने। भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (एनसीएसटीसी-डीएसटी) तथा इंडियन साइंस कम्युनिकेशन सोसाइटी (इस्कॉस) के संयुक्त तत्वाधान में पांच दिवसीय साइंस कॉमिक्स वर्कशॉप में विद्यार्थियों ने विभिन्न विषयों पर कामिक्स बनायी।
विज्ञान संचार को सरल बनाने के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि, दूर संचार, वन्य जीवन आदि विषयों पर सरल और रोचक ढंग से कामिक्स चित्रित की गयीं। जल है तो कल है, एक नदी आंसू भरी, खेत बने जलती लंका, मौसम है मस्ताना, हम नहीं तो तुम नहीं, दान बचाए जान जैसे अनेक शीर्षकों से सजे कामिक्स कोई न कोई संदेश देते नजर आए।
कार्यशाला में बच्चों को विख्यात विज्ञान संचारक और निसकेयर के निदेशक डॉ. मनोज कुमार पटैरिया का भी मार्गदर्शन मिला जिसमें उन्होंने विद्यार्थियों से सोच में वैज्ञानिक दृष्किोण अपनाने को कहा। इस्कॉस के डॉ. वीपी सिंह, कानपुर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार सिंह, लविवि के एंथ्रोपोलोजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एपी सिंह, फाइन आट्र्स फैकल्टी के डॉ. उमेंद्र प्रताप सिंह व डॉ. सुनील कुमार तथा तकनीकी विशेषज्ञ रवि अग्रवाल के दिशा निर्देशन में छात्रों ने पांच दिन तक विज्ञान कामिक्स निर्माण के गुर सीखे। फैकल्टी के डीन डॉ. रतन कुमार ने अंतिम दिन विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र वितरित किए। उन्होंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में विद्यार्थियों से अपील की कि वे अपने कला क्षेत्र में वैज्ञानिक विषयों को भी शामिल करें।