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शहादत पर सियासत और अविश्वास के तीर

moooसियाराम पांडेय ‘शांत’

दुश्मन से लड़ना फिर भी आसान है लेकिन जब अपने बगावत पर उतर आएं तो मुश्किलों का बढ़ना तय है। पाकिस्तान की मजबूरी है कि वह सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध करे क्योंकि यह मामला आतंकवादियों से जुड़ा है। ऐसे में दुनिया भर के सामने उसे अपना चेहरा बचाना है। कूटनीति भी कहती है कि वह इस सच पर पर्दा डाले क्योंकि इसका विपरीत असर पाकिस्तानी अवाम और सेना पर पड़ सकता है लेकिन अगर भारत में भी कुछ लोग पाकिस्तान जैसी भाषा बोलने लगें तो इसे उनका बड़बोलापन कहा जाएगा, राजनीतिक फितरत माना जाएगा या कि देशद्रोह। सेना देश का विश्वास होती है। उसका मनोबल नहीं टूटना चाहिए। सेना पर अविश्वास का मतलब देश पर अविश्वास होता है। भारत के कुछ नेताओं को यह आम बात भी समझ में नहीं आती। एक ओर पाकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से अब तक दस से अधिक बार युद्ध विराम का उल्लंघन कर चुका है, वहीं अपने देश के कुछ नेता सेना का मनोबल बढ़ाने की बजाय उसकी विश्वसनीयता पर ही संदेह कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में लखनऊ और वाराणसी समेत अनेक शहरों में तो पोस्टरवार तक की शुरुआत हो चुकी है। लखनऊ में लगे पोस्टर में तो भाजपा के कई बड़े नेताओं के चित्र छपे हैं। हालांकि इसके लिए जिम्मेदार  समझे जा रहे एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि इसमें भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। सेना के सर्जिकल स्ट्राइक से उत्साहित जनता के स्तर पर प्रदेश भर में इस तरह के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जो पोस्टर लगाया है,उसमें नरेंद्र मोदी को राम, नवाज शरीफ को रावण और अरविंद केजरीवाल को मेघनाद बताया गया है।

प्रधानमंत्री समेत भाजपा के कई बड़े नेता इस बात की गुजारिश कर चुके हैं कि सैनिकों की शहादत पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कुछ इसी तरह का राग आलापा गया कि भाजपा इस मामले में राजनीतिक लाभ न ले। इसके पहले तक विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 56 इंच के सीने पर सवाल उठा रहा था लेकिन सेना के जांबाज जवानों के प्रयास ने उत्तर प्रदेश, पंजाब,उत्तराखंड के चुनावी समीकरण बदल दिए। पूरे देश में मोदी की वाहवाही होने लगी। यह बात विपक्ष को रास नहीं आई और उसकी ओर से कुछ ऐसे सवाल खड़े किए गए जिससे कि पाकिस्तान को अपना चेहरा बचाने में मदद मिल सकती है।

एक ओर तो भारतीय मीडिया इस मामले में पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। चश्मदीदों की प्रतिक्रिया जानने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं कुछ भारतीय नेता सर्जिकल स्ट्राइक को ही नकारने में जुट गए हैं। इसे चुनाव चाल कहेंगे या राजनीतिक कुचाल, यह तो आने वाला क्त ही तय करेगा। पाक अधिकृत कश्मीर में हुई सर्जिकल स्ट्राइक की विश्वसनीयता पर पाकिस्तान तो सवाल उठा ही रहा है लेकिन भारत में भी इसके सबूत मांगने का सिलसिला तेज हो गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगे गए हैं। कांग्रेस के संजय निरुपम, दिग्विजय सिंह और पी चिदंबरम ने जहां सर्जिकल स्ट्राइक की विश्वसनीयता पर अंगुली उठाई है, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कहा है कि जब तक सबूत नहीं मिलता, वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि पाक अधिकृत कश्मीर में ऐसा कुछ हुआ भी है। यह अलग बात है कि इन नेताओं को जनता के प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा है। शिवसेना ने तो उनके खिलाफ लगभग मोर्चा ही खोल दिया है।

हालात यह है कि प्रबल जन विरोध के चलते इन दोनों ही राजनीतिक दलों को बैकफुट पर आना पड़ा है। सर्जिकल स्ट्राइक के दूसरे ही दिन सोनिया गांधी ने सेना के इस कदम की सराहना की थी। राहुल गांधी ने भी कहा था कि नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री लायक काम किया है। अरविंद केजरीवाल ने भी प्रधानमंत्री की इस बात के लिए सराहना की थी। इसके बाद भी इन राजनीतिक दलों को अपना स्टैंड क्यों बदलना पड़ा। सच तो यह है कि सैनिकों की शहादत और सर्जिकल स्ट्राइक भारत में राजनीति का विषय बन चुकी है। हर राजनीतिक दल अपने अपने स्तर पर सियासत की इस वैतरणी में छलांग लगा रहा है। उसे नजर आ रहा है वोट का गणित। इसके लिए अगर सैनिकों का मनोबल गिरता हो तो भी कोई बात नहीं। बचपन में एक गीत पढ़ा था-‘मरता है कोई तो मर जाए,हम तीर चलाना क्यों छोड़ें।’ भारतीय राजनीतिक दलों पर मौजूदा हालात में यह कविता शत-प्रतिशत खरी उतरती है।

सर्जिकल स्ट्राइक की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के साथ बैठक की। सूत्रों की मानें तो पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत पहले से रक्षा मंत्रालय के पास हैं। बैठक में इस बात पर मंथन हुआ कि इन सबूतों को सार्वजनिक किया जाए या नहीं।केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू की इस बात में दम हैं कि प्रधानमंत्री से जलने वाले ही सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं लेकिन इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयानों का जवाब देने की जरूरत नहीं है।

पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के प्रवक्ता असीम सलीम बाजवा ने भी सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार किया था। पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे थे। अपना चेहरा बचाने के लिए पाकिस्तान की यह मांग तो समझ आती है लेकिन भारतीय नेताओं द्वारा सेना की कार्रवाई पर संदेह करना समझ से परे है। पाकिस्तान अगर सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार करता है तो यह भारत के लिए फायदे की बात है। भारत को पाकिस्तान की हर चाल की काट तलाशनी है। उसे शिकस्त देना है। वह कब तक उसे बेनकाब करने के चक्कर में अपनी ऊर्जा का अपव्यय करता रहेगा? चश्मदीदों ने तो पाकिस्तान की पोल ही खोल दी है। यहां तक कहा है कि ट्रक में भरकर आतंकवादियों के शवों को पाक सेना के लोग गोपनीय स्थान पर ले गए और उन्हें दफन कर दिया। उनके इस बयान से पाकिस्तान की पोल खुल गई है। पाकिस्तान जिस तरह से संसद की बैठक कर रहा है। सर्वदलीय बैठक कर रहा है, उससे साफ है कि सर्जिकल स्ट्राइक से वह बेहद परेशान है। राजनीति के लिए सेना की शहादत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। विपक्ष को सेना की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। देश पहले है,राजनीति नहीं। इतनी सामान्य बात भी समझ में नहीं आती तो इसे इसे इस देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जाएगा? वोट के लिए देश की प्रतिष्ठा को गिरवी रखना कथमपि उचित नहीं है।

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