यह आदेश जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने पप्पू सिंह आदि की ओर से दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। दरअसल याचीगणों ने अपने खिलाफ सीतापुर के तंबौर थाने पर हत्या के प्रयास और एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को चुनौती दी थी। 25 सितंबर को याचिका पर सुनवाई करते समय कोर्ट को याचीगणों की ओर से पेश इंजरी रिपोर्ट पढऩे में नहीं आ रही थी। इंजरी रिपोर्ट इस प्रकार लिखी थी कि उसे समझना मुश्किल हो रहा था जिसके चलते याचिका पर सुनवाई में बाधा आ रही थी। कोर्ट ने इसे न्याय प्रशासन में बाधा माना और रिपोर्ट तैयार करने वाले सीतापुर के जिला अस्पताल के डॉक्टर को तलब कर लिया।

काम की अधिकता से ऐसा हुआ : डॉक्टर

रिपोर्ट तैयार करते वाले डॉ. पियूष कुमार गोयल जब कोर्ट में आए तो उन्होंने उक्त इंजरी रिपोर्ट की टंकित कॉपी दी। कोर्ट ने जब उनसे पूछा कि क्या उन्हें डीजी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के सर्कुलर के बारे में जानकारी नहीं है तो उन्होंने कहा कि जानकारी तो है परंतु काम की अधिकता के कारण उनसे ऐसा हो गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि काम की अधिकता इस बात का बहाना नहीं हो सकता। उधर, याचिका पर अपर शासकीय अधिवक्ता रवि सिंह सिसोदिया के तर्को को मानते हुए कि वादी को घटना में चोटें आई थीं, लिहाजा प्राथमिकी को रद नहीं किया जा सकता, पर कोर्ट ने याचिका को बलहीन पाते हुए खारिज कर दिया।

यह है सर्कुलर

कोर्ट के एक आदेश के अनुपालन में डीजी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने आठ नवंबर, 2012 को सर्कुलर जारी कर प्रदेश के सभी सरकारी डॉक्टरों के आदेश दिया था कि मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि लेखनी सुस्पष्ट हो ताकि उसे जज, सरकारी वकील या डिफेंस के वकील द्वारा पढ़ा जा सके। डॉक्टर मेडिको लीगल रिपोर्ट अपने लिए नहीं तैयार करते अपितु उसका प्रयोग कोर्ट में होने के लिए करते हैं। यह भी आदेश दिया था कि रिपोर्ट में साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाए और संक्षिप्त शब्दों का उपयोग न करें। यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि जिस डॉक्टर ने रिपोर्ट तैयार किया हो उसका नाम हस्ताक्षर व पद रिपोर्ट पर अवश्य लिखा हो।