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क्या मयंक अग्रवाल के प्रदर्शन से बदलेगा टीम मैनेजमेंट, चयनकर्ताओं का नजरिया

मैं अक्सर कहा करता हूं कि क्रिकेट में नाम नहीं खेलता, आपको खुद खेलना पड़ता है. अगर आप का नाम सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, या विराट कोहली है, तो आप को हर नए मुकाबले में अपने नाम के अनुरूप खेलना पड़ेगा. केवल नाम से सैकड़ा अपने आप नहीं टंग जाएगा. पर इधर कुछ वर्षों से विदेश यात्राओं के दौरान नामों को ही खिलाया जा रहा था. 

भारत की विदेशों में असफलता का मुख्य कारण था ओपनिंग भागीदारी का न जम पाना. मुरली विजय व केएल राहुल की शुरुआती जोड़ी इंग्लैंड में भी लगातार पानी पीती नजर आ रही थी, तो इधर ऑस्ट्रेलिया में भी निरंतर उखड़ती जा रही थी. इससे मध्य क्रम की बल्लेबाजी पर बढ़ा दबाव पड़ता जा रहा था. विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा को नई गेंद के सामने जल्दी ही विकेट पर आना पड़ रहा था. ये असफल रहे तो समझ लीजिए, भारतीय बल्लेबाजी का काम तमाम.

यह अच्छा रहा कि ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर मौजूद टीम मैनेजमेंट ने यह बात समझ ली है. मेलबर्न टेस्ट में साहसिक निर्णय लेते हुए मुरली विजय व चयनकर्ताओं के चहेते केएल राहुल को बाहर का रास्ता दिखाया गया. फल यह निकला कि मयंक अग्रवाल जैसे नवोदित प्रतिभाशाली बल्लेबाज को मौका मिला और मौके को भुनाने में आजकल की युवा पीढ़ी बहुत ही होशियार है.

मयंक अग्रवाल ने दोनों हाथों से मौके को लपक लिया और दोनों पारियों में भारत को अच्छी शुरुआत देकर जीत की बुनियाद रख दी. दूसरी पारी में तो दूसरे सिरे पर विध्वंस मचा हुआ था और पैट कमिंस ने 6 विकेट झटक लिए थे. पर इस तहस नहस होती पारी को मयंक अग्रवाल ने बचा लिया. अपने जीवन के पहले ही टेस्ट मैच में इस हैरतअंगेज प्रदर्शन ने समालोचकों, जानकारों व गुणीजनों को चौंका दिया.

भारतीय गेंदबाज तो इंग्लैंड दौरे से ही लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे. हर मैच में विपक्षी टीम के 20 विकेट लेने में कामयाब हो रहे थे. जब आपके गेंदबाज ऐसा करने में सफल होते हैं, तब सीरीज आपको जीतना ही चाहिए, पर दक्षिण अफ्रीका व इंग्लैंड में ऐसा करने के बाद भी कमजोर बल्लेबाजी हमारी लुटिया डुबो रही थी. उसमें भी मुख्य कारण सलामी बल्लेबाजों का लगातार असफल होना था.

यूं देखा जाए तो भारतीय गेंदबाजों का कभी यथोचित गुणगान नहीं हुआ. बल्लेबाजों की बहादुरी के ही बखान किए जाते रहे. पर अब यह साबित हो गया है कि विदेशों के मुश्किल विकेटों पर हमारे बल्लेबाज मिट्टी के माधो साबित होते रहे. गेंदबाजों के बढ़िया व असरदार प्रदर्शन के बल पर ही हम विश्व क्रिकेट के शीर्ष पर काबिज हैं. विराट कोहली व चेतेश्वर पुजारा की तकनीकी कुशलता व दबाव झेलेने की क्षमता को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के बल्लेबाज ‘आयाराम-गयाराम’ दिखाई देते थे

पर मयंक अग्रवाल के दृश्यपटल पर आने के बाद तस्वीर का रुख पलट गया है. पिछले तीन वर्षों से रणजी ट्रॉफी प्रतियोगिता में वे रनों का अंबार खड़ा कर रहे थे. दो तिहरे शतक भी उनके नाम हैं. पर चयनकर्ताओं के कान पर जूं भी नहीं रेंगी. जिस घरेलू क्रिकेट को भारतीय क्रिकेट की नर्सरी कहा जाता है, उसी प्रतियोगिता में किए गए प्रदर्शनों की लगातार अनदेखी की जा रही थी.

मयंक अग्रवाल व जलज सक्सेना जैसे खिलाड़ी जान लगा रहे थे, पर चयनकर्ता हैं कि मान ही नहीं रहे थे. बेचारे देवेंद्र बुंदेला जैसे खिलाड़ी लतातार बरसों तक अच्छा प्रदर्शन करके रनों का अंबार लगाते रहे, और रिटायर भी हो गए. पर घरेलू क्रिकेट के प्रदर्शनों की उपेक्षा करने का सिलसिला कभी थमा नहीं. केएल राहुल को जितने मौके मिले, उसे चनयकर्ताओं की कृपादृष्टि ही कहा जाएगा. उतनी कृपा दृष्टि में तो कोई भी नई प्रतिभा स्थायित्व की राह पकड़ लेती.

मयंक अग्रवाल ने रन बनाए व टीम को अच्छी शुरुआत दी, इसकी सभी ओर प्रशंसा हो रही है. पर मैं तो रन बनाने के तरीके का मुरीद बन गया हूं. यह उस युवा पीढ़ी के हौसले का प्रतीक है, जो युद्ध को दुश्मन की गली में ले जाकर लड़ने का इरादा रखती है. उसका खेल दब्बू बन कर या सहम कर खेलने का पक्षधर नहीं है. मयंक उस बात को भी नहीं मानते कि विकेट पर टिके रहे तो रन अपने-आप बनेंगे.

रन अपने-आप नहीं बनते, बनाने पड़ते हैं. गेंदबाजों की गेंदों की पिटाई करके रन बनाएंगे तो उसका आत्मविश्वास डगमगा जाएगा. जब ऐसा होगा तब हमारे अन्य बल्लेबाज भी प्रेरित होंगे और रनों की अच्छी फसल काट सकेंगे. मयंक अग्रवाल का खेल वीरेंद्र सहवाग की तरह ही सकारात्मक और रचनात्मक है. वे गेंदबाज की प्रसिद्धि को नहीं, गेंद को खेलते हैं. इसीलिए अपने-आप पर दबाव नहीं आने देते हैं.

आशा है. भारतीय चयनकर्ताओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन आएगा. मयंक अग्रवाल की तरह ही जलज सक्सेना जैसे खिलाड़ियों को भी मौका मिलेगा. जलज सक्सेना एक कुशल ऑलराउंडर हैं. भारतीय क्रिकेट में ऑलराउंडर की तलाश की बात कही जाती रही है. हार्दिक पांड्या, रवींद्र जडेजा की श्रेणी में ही जलज सक्सेना को भी मौका मिलना चाहिए. तभी घरेलू क्रिकेट को भी खिलाड़ी गंभीरता से लेंगे और क्रिकेट की प्रतिस्पर्धा रोचक व असरदार होगी.

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