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गुजरात का दलित उत्पीड़न बना चुनावी मुद्दा, सड़क पर उतरे कांग्रेसी

unnamedकानपुर। संसद के बाद कांग्रेस गुजरात मामले को लेकर सड़क पर उतर आई है। जिसके चलते जिला कांग्रेस कमेटी ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर मौन धरना दिया। कांग्रेस के ऐसे विरोध से अब एक बात तो साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी हर हाल में इसको चुनावी मुद्दा बनाने से कोई परहेज नहीं करेगी। कांग्रेस का मानना है कि इसी मुद्दे के सहारे उत्तर प्रदेश में दलितों पर पैठ बनाई जा सकती है। बताते चलें कि गुजरात के ऊना जनपद के समढ़ीयाणा गांव में बीते सप्ताह कुछ दलित युवकों को कथित गौरक्षकों ने पिटाई की थी कि वह लोग गाय का चमड़ा निकालते है। इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह रहा है कि पुलिस ने पीड़ितों को थाने लाने के बजाय कथित गौरक्षकों को सौंप दिया। जिसके बाद कथित गौरक्षक लगभग तीन घंटे तक गांव में घूम-घूमकर उनकी पिटाई करते रहे। मामला मीडिया में आने के बाद कांग्रेस सहित सभी दलों ने संसद में बवाल काटना शुरू कर दिया। लेकिन अब कांग्रेस इस मुद्दे को उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सड़क पर उतारना चाह रही है। जिसकी शुरूआत कानपुर से गुरूवार को हो गई। जिला ग्रामीण कमेटी के अध्यक्ष अभिजीत सिंह सांगा के नेतृत्व में नवाबगंज स्थित कंपनी बाग चैराहे के बाबा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थल से मुद्दे को सड़क पर लाने का आगाज कर दिया। इस अवसर पर अभिजीत सिंह सांगा, नरेश चन्द्र त्रिपाठी, कमल शुक्ला, ममता तिवारी, मदन मोहन सिंह, विनोद सोनकर सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहें।
मौन धारण कर किया विरोध कांग्रेसियों ने सुबह नौ बजे कंपनी बाग चैराहा पहुंचे और लगभग एक घंटे तक लोगों से गुजरात में हुए दलितों पर अत्याचार को लेकर चर्चा करते रहे। इसके बाद 10 बजे बाबा भीमराव अंबेड़कर की प्रतिमा के नीचे मौन धारण कर गुजरात सरकार व केन्द्र सरकार का विरोध प्रदर्शन किया। अभिजीत सिंह सांगा ने कहा कि दोनों जगहों पर भाजपा की सरकार है और बिना सरकार के सहमति के कथित गौरक्षक इतनी बड़ी दुस्साहस नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि हद तो तब हो गई जब पुलिस मौके पर पहंुचने के बाद भी पीड़ितों को गौरक्षकों के हवाले कर दिया और वही लोग घंटों पीटने के बाद थाना ले गए।
नहीं दिखता कानपुर का दलित उत्पीड़न
कानपुर देहात में बीते दो माह पहले एक प्राइमरी के अध्यापक ने दलित महिला प्रधान को पहले तो स्कूल की कुर्सी में बैठने से मना किया। इसके बाद प्रधान के जाने पर कुर्सी को धुलवाया। तो वहीं रसूलाबाद के एक मंदिर को इसलिए गंगाजल से धुलवाया गया कि मंदिर में दलित ने पूजा की थी। दोनों खबरे मीडिया में खूब चली और जिला प्रशासन सकते में आया और कानूनी नोटिस देकर अपनी इतिश्री कर लिया। यह सब होने के बाद कांग्रेसियों को यहां का दलित उत्पीड़न नहीं दिखता।

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