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गौ रक्षा का गोरखधंधा

mathanदेश भर में गोरक्षा के नाम पर हाहाकार मचा हुआ है। चुनाव सिर पर है लिहाजा हर रोज बयानो के तीर चल रहे हैं गुजरात के ऊना में चार दलितों की गोरक्षकों की पिटाई ने आग में घी का काम किया है। उधर बिहार में और देश के अन्य हिस्सों में भी कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। गोरक्षकों की इन अराजक घटनाओं से खिन्न होकर प्रधानमंत्री ने जहां सख्त तेवर दिखाएऔर यहां तक कह डाला कि मारना है तो मुझे मारो। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि गाय तो हम पालते हैं  सेवा करते हैं, लेकिन राजनीति से अलग हट कर देखें तो तस्वीर पूरी तरह से उलट है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन फेल है इससे जुड़ी तमाम योजनाएं सिर्फ कागजों में धूल फांक रही है। गोवंश में लगातार गिरावट आदर्ज की जा रही है। हालात बद से बदतर हैं।   

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव की आहट के साथ ही गौमाता की रस्सी एक बार फिर खोल दी गई है। बीते साल बिहार चुनाव से ठीक पहले यूपी के दादरी में अखलाक के घर से निकला गौमांस का भूत फिर डरा रहा है। गौरक्षा के नाम पर दलितों पर बढ़े हमले यही दास्तान बयां करते हैं। गौरक्षा के नाम पर नकली दुकानें सजी हैं और आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया जा रहा है। केंद्र और प्रदेश की सरकार सकते में है कि इस भूत से कैसे मुक्ति पाई जाए। मामला वोटों का है, लिहाजा हर रोज बयानों के तीर छोड़े जा रहे हैं।

बीते बुधवार को सिद्धार्थ नगर के भवानीगंज थानान्तर्गत धनखरपुर-भड़रिया मार्ग पर पुलिस ने पिकअप पर कटान को ले जाए जा रहे आधा दर्जन गोवंश समेत चार गौ तस्करों को पकड़ने में सफलता हासिल की। वाहन में कम जगह होने से दो गायों की दम घुटने से मौत हो गई। प्रशासन अपना काम कर रहा है लेकिन सरकार गौरक्षा के नाम पर चल रही दुकानों को बंद करने में असमर्थ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फर्जी गौरक्षकों पर दिए गए बयान गोली मारनी है तो मुझे मारो, मेरे दलित भाइयों को नहीं के बाद मानो भूचाल आ गया है। गौरक्षक मुखर हैं और विरोधी मौके को हाथ से जाने देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं।

 राजनीति के इस खेल को समझने के लिए हाल की घटनाओं पर नजर डालने की जरूरत है। गुजरात के ऊना में चार दलित युवकों की कुछ गौरक्षकों ने पिटाई की। उन पर आरोप था कि उन्होंने गाय मारी और उसका चमड़ा उतार रहे थे। लगभग उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में दो दलितों की मामूली विवाद में जबरदस्त पिटाई हुई। दबंगों ने न सिर्फ उनको पीटा, बल्कि उनके ऊपर पेशाब करके मानवता को तार- तार कर दिया। इसी समय उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में 15 रुपए का बकाया वसूलने के लिए एक दलित दंपति की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। गौरक्षा के नाम अराजकता के इस खेल को रोकने के लिए खुद प्रधानमंत्री को सख्त तेवर दिखाने पड़े। उन्होंने राज्य सरकारों से जवाबदेही तय करने की अपील की।

प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी पलटवार किया कि भाजपा के लोगों के यहां गाय कहां है, गायें तो हमारे यहां मिलती हैं। हम गाय की सेवा करने वाले लोग हैं। इस मुद्दे पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। राजनीति से हटकर आंकड़ों पर पर डालें तो तस्वीर अलग ही नजर आती है। पशुधन विभाग के सूत्रों के अनुसार केंद्र व राज्य सरकार की तकरार में गोवंश संवर्धन की कई योजनाएं लटकी हैं। राष्ट्रीय गोकुल मिशन फेल रहा है।

एकीकृत पशु केंद्र गोकुल ग्राम, स्वदेशी गायों के उत्तम नस्लों को संरक्षण देने के लिए बुल मदर फार्म्स के अलावा, गौ पालन संघ जैसी योजनाएं कागजों में ही धूल फांक रही हैं। देशी गोवंश में वर्ष 2007-12 के बीच 9 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी। पिछले चार वर्षों में यह गिरावट बढ़कर 15 फीसद तक हो गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गौवंश में लगातार गिरावट जारी है। मुजफ्फरनगर जिले में 71 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है। बागपत में 68 फीसदी, मेरठ में 60 फीसदी, गाजियाबाद में 64, मुरादाबाद में 42 फीसदी, सीतापुर में 25.48 फीसदी, सुलतानपुर में 37 फीसदी तक गोवंश में कमी आई है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पीपीपी माडल में पशुओं के रखाव की योजना भी लचर रवैये का शिकार है। गौरतलब है कि पूरे देश में लगभग 3500 पंजीकृत गौशालाएं हैं। जिन्हें नियमित रूप से अनुदान मिलता है। नई के निर्माण के लिए भी अनुदान की व्यवस्था है।

अकेले यूपी में 253 गौशाला पंजीकृत हैं। प्रदेश में नगर निगम स्तर पर नंदी पार्क भी संचालित किए जा रहे हैं लेकिन गौशालाओं की स्थिति काफी खराब है। राष्ट्रीय स्तर पर यूपी में कानपुर की गौशाला ही गुणवत्ता मानकों पर खरी उतर रही है। तमाम सरकारी कवायद के बावजूद गौवंश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।   हालांकि अभी तक ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं जिससे पता लगाया जा सके कि कितनी गायें सड़कों पर आवारा घूमती हैं। ऐसे में अगर फर्जी गौरक्षकों पर लगाम कसकर गौवंश संरक्षकों को बढ़ावा दिया जाए तो पूरे गोरखधंधे को बंद किया जा सकता है।

15 अरब डालर के धंधे पर हैं निगाहें-

देश के टॉप 10 कारोबार में शुमार चमड़ा उद्योग कारपोरेट से लेकर राजनीतिज्ञों की निगाह में हैं। आस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका से लेकर अरब देशों तक भारतीय लेदर की खासी डिमांड है। सालाना 15 करोड़ डालर के निर्यात के कारण बड़े कारोबारियों के लिए यह चोखा धंधा है। हालांकि गोरक्षकों के आंदोलन और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चाबुक चलने से चमड़ा उद्योग में 25 फीसद तक गिरावट दर्ज की गई है।  हाल के वर्षों तक चमड़ा उद्योग में आठ से 10 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही थी लेकिन पिछले एक दो वर्षों में वृद्धि दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। दो वर्षों में चमड़ा मंडियों में गाय और भैंस की खालों की सप्लाई लगातार घटती जा रही है।  दादरी में बीफ की घटना के बाद से गौरक्षक संगठन ज्यादा मुखर हुए हैं। इन संगठनों के कार्यकर्ता भैंस ले जाने वाले ट्रकों की भी जांच कर रहे हैं। ऐसे में डर का माहौल बनने से कई कारखाने बंद हो गए हैं। मवेशियों के ट्रकों पर हमले और कई जगहों पर ट्रांसपोर्टरों को मारने-पीटने की घटनाओं के बाद भैंसों के बूचड़ख़ानों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। गौरतलब है कि गौवध पर प्रतिबंध को लागू करना कानूनी मसला है। गाय जहां हिंदू धर्म के लिए आस्था का प्रतीक है वहीं दलित और मुस्लिमों के लिए मृत मवेशियों की खाल उतारना रोजी-रोटी का जरिया है। गौवंश पर हमले को लेकर हिंदू हमेशा ही भावुक रहा है। ऐसे में चमड़ा कारोबारियों की एक गलती बड़े हादसे का कारण बनती है। हिंदुओं में केवल दलित समाज के लोग ही सदि़यों से चमड़ा उतारने का कार्य करता है। हालांकि यह चमड़ा विभिन्न मृत मवेशियों का होता है। पिछले तीन दशकों में मुस्लिमों ने चमड़ा उतारने का कार्य संभाला है। इसके बाद इस धंधे में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है। ऐसे एक छोटी सी घटना भी राजनैतिक रूप लेकर माहौल को भयावह बना देती है। गोश्त का कारोबार करने वाले व्यापारी और मज़दूर सभी डरे हुए हैं।

कानून अपना कार्य कर रहा है, हम अपना–

गौ रक्षा सेना के उपाध्यक्ष राहुल बंसल का कहना है कि गौरक्षकों का कार्य हिंसा करना नहीं है। उनका कार्य गौमाता की सेवा करना है। प्रदेश के 47 जिलों में गौरक्षक सेवा कार्य कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में गायों की स्थिति बदली है। कानून अपना कार्य कर रहा है और गौरक्षक अपना कार्य कर रहे हैं। बंसल का कहना है कि प्रधानमंत्री ने एक प्रकार से चेतावनी देने का कार्य किया है जिससे गौरक्षा के नाम पर फर्जीवाड़ा रोका जा सके। हालांकि उन्होंने पीएम के इस बयान पर आपत्ति जताई कि सौ में अस्सी फीसद गौरक्षक फर्जी हैं। उनका कहना है कि मुट्ठी भर लोग तो गलत कार्य कर सकते हैं लेकिन अस्सी फीसद समाज गलत कार्य नहीं कर सकता है। इस मामले में प्रधानमंत्री को गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगनी चाहिए।

                                                                                                                                                        —  मनीष शुक्ल

 

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