प्रयागराज का कुंभ रहस्यमई बाबाओं के जमघट के लिए भी मशहूर है. यह कुम्भ शुरू हो चुका है और इसमें अजब गजब वेशभूषा व अपनी चमत्कारिक शक्तियों के साथ कई बाबा नज़र आते हैं और अपने अनोखे कामों के लिए भी जाने जाते हैं. ऐसे ही यहां आने वाले सैकड़ों बाबा आकर्षण का केंद्र बने हैं. उन्हीं बाबाओं में से एक बाबा हाथ में लोहे की 20 किलो चाबी के साथ घूमते हुए आपको संगम की रेती पर नजर आएंगे. इनके गले में, कमर पर या कहें कि शरीर पर हमेशा लोहे की चाबी मौजूद रहती है, जो सामान्य चाबी की तरह दिखती तो है, लेकिन इसका आकार व इसके पीछे छिपा आध्यात्मिक सार व दर्शन बेहद ही प्रभावशाली है. 
बता दें, उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में लगभग 45 साल पहले हरिश्चंद्र विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. बचपन से ही आध्यात्मिकता में खासी रुचि थी और मात्र 16 साल की उम्र में घर से निकल गए. कुछ ही दिन में उन्हें लोग कबीरा बाबा ही कहने लगे और वह हरिश्चंद्र विश्वकर्मा से कबीरा बाबा बन गए. जल्द ही आध्यात्मिकता में वह खुद को प्रवाहित करते गए और जीवन का अलग दर्शन गढ़ा. उसी दर्शन से ही एक चाबी की उन्होंने परिकल्पना की और फिर वह चाभी उनके जीवन का और उनके आध्यात्म ज्ञान का मूल बन गई.
उन्होंने अपने हाथ में 20 किलो की चाबी लेकर देश भर में पदयात्रा करने वाले हरिश्चंद्र विश्वकर्मा कब कबीरा बाबा से चाबी वाले बाबा बन गए. जानकारी के लिए बता दें, अब तो अध्यात्म के अपने दर्शन की वजह से उनके पास बड़ी संख्या में उनके भक्त हैं. लखनऊ से दिल्ली हो या कन्याकुमारी उनका सफर अनवरत चलता है. अपनी यात्रा और आध्यात्म के बारे में चाभी वाले कबीरा बाबा बताते हैं कि उन्होंने सत्य की खोज की है. लोगों के मन में बसे अहंकार का ताला वह अपनी इस चाभी से खोलते हैं. जो भी उनकी बात सुनते हैं, उनसे मन से अहंकार निकालते हैं.
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