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ज्यों-ज्यों ‘कीचड़’ फैला, त्यों-त्यों ‘कमल’ खिला

अशोक पाण्डेय

‘कमल’ सिर्फ भाजपा का चुनाव चिह्न नहीं है। ‘कमल’ संपूर्ण ब्रह्माण्ड का प्राण है। भारतीय संस्कृति की ‘चेतन जड़’ है, यह बाद दीगर है कि कमल कीचड़ में खिलता है, उसका भी बड़ा गूढ़ निहितार्थ है, कि यदि भारतीय कीचड़ में ‘कमल’ जैसा पुष्प खिल सकता है तो फिर भारत मां की उर्वरा भूमि पर धन-धान्य की क्या कमी हो सकती है, बस इच्छा शक्ति चाहिए। और उत्तर प्रदेश के 20 करोड़ जनमानस ने उस अदम्य इच्छाशक्ति से अवध की सरजमीं को केसरिया कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने दिल्ली में जिस तरह की शराफत के साथ विपक्ष को जवाब दिया, वह बसपा-सपा और कांग्रेस के लिए धन्यवाद ज्ञापन ही माना जाएगा, क्योंकि इन दलों के नेताओं ने जितना ‘कीचड़’ उछाला, ‘कमल’ को उतनी ही खाद मिली। सातों चरण पर दृष्टि डालें तो एक बात साफ है कि विपक्षी दलों के नेताओं ने मोदी पर ज्यों-ज्यों कीचड़ उछाला त्यों-त्यों यूपी में कमल खिला।

‘कमल’ अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं, धन की लक्ष्मी के आसन और जगत्पिता ब्रह्मा की उत्पत्ति के लिए भी जाना जाता है। नयनों को कमल की संज्ञा दी गई है। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में इसकी खासी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता है। कमल भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। विष्णु भगवान के नाभिकमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति बताई जाती है। माता लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है। चतुर्भुज विष्णु अपने एक हाथ में कमल को धारण करते हैं। भगवान बुद्ध की मूर्तियों में प्राय: उन्हें कमल पर विराजित दिखाया जाता है। मिस्र की पुस्तकों और मंदिरों की चित्रकारी में भी कमल की अहमियत देखते ही बनती है। विष्णु पुराण में इन्द्र द्वारा लक्ष्मी की स्तुति करते हुए कहा गया है – कमल के आसन वाली, कमल जैसे हाथों वाली, कमल के पत्तों जैसी आंखों वाली, हे पद्म (कमल) मुखी, पद्मनाथ (भगवान विष्णु) की प्रिय देवी, मैं आपकी वन्दना करता हूं। इससे पता चलता है कि भारतीय संस्कृति में कमल के सौंदर्य को कितना आकर्षक और पवित्र माना गया है। एक पुराण का नाम ही पद्म पुराण है। पद्म का अर्थ है ‘कमल’।

‘नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोक शोकहतं च समस्तम्।’

यह तो रही भौतिक बात, अब इसका दैविक प्रभाव भी परख लेते हैं। यूपी के विधानसा चुनावों में राहुल, अखिलेश, प्रियंका, आजम, मायावती और अन्य कइयों ने प्रधानमंत्री मोदी को कसाब, गधा, फरेबी, झूठा, चालबाज, पापी और न जाने क्या-क्या कहा, उन पर जमकर ‘कीचड़’ उछाला। मोदी ने ‘कीचड़’ के ही प्रहार को संजोकर रखा, उसमें बदले की भावना का ‘विष’ न मिलाकर ‘कीचड़’ को ‘कमल’ के पोषण में लगा दिया। परिणाम गवाह हैं कि दिल्ली के सटे गांवों से लेकर काशी के लुटे-पिटे घाटों तक इस ‘कीचड़’ ने ‘कमल’ के लिए अमृत का काम किया। फिर जिसके पास ‘अमृत’ हो उसे ‘विष बुझे वाणों’ से क्या खतरा हो सकता है।

 

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