निकाह हलाला कुरान की प्रैक्टिस है और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. यह कहना है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का. बोर्ड का ये बयान तब आया है जब सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने जा रहा है. राजधानी दिल्ली में बोर्ड की रिव्यू मीटिंग में 40 सदस्यों ने इसके आलावा भी कई मुद्दों पर मंत्रणा की 
AIMPLB के सेक्रेटरी और लीगल काउंसल जफरयाब जिलानी ने मीटिंग के बाद कहा कि निकाह हलाला को चुनौती नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा, “निकाह हलाला एक प्रथा है जिसके तहत अपनी पत्नी को एक बार तलाक दे देने के बाद आप तब तक उससे दोबारा निकाह नहीं कर सकते जब तक वह किसी और से शादी करके उसके साथ रिश्ता नहीं बना लेती और फिर उससे तलाक नहीं ले लेती. यह प्रथा कुरान पर आधारित है और बोर्ड इससे विपरीत विचार नहीं रख सकता है.”
जिलानी ने कहा, “हलाला के मकसद से किया गया निकाह मान्य नहीं है और आरोपियों को कानून के हिसाब से गिरफ्तार किया जाना चाहिए.”बोर्ड ने यह भी तय किया है कि देश के 10 शहरों में शरियत कोर्ट बनाए जाएंगे. पहला कोर्ट सूरत में शुरू होगा जिसका उद्घाटन 22 जुलाई को होगा. महाराष्ट्र में 9 सितंबर तक दारुल क़ज़ा और नवंबर के अंत तक शरियत कोर्ट का शुरू कर दिया जाएगा. जिलानी ने कहा, “शरियत अदालतों के असंवैधानिक होने का सवाल ही नहीं उठता है.”
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