केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार को विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह एससी/एसटी कानून को लेकर भ्रांतियां फैला रहा है जिसके कारण ‘भारत बंद’ आहूत किया गया। उच्चतम न्यायालय के फैसले को पटलने के लिए संसद द्वारा पारित अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के खिलाफ अन्य पिछड़ा वर्ग एवं कुछ सवर्ण जातियों के संगठनों ने बंद आहूत किया था। लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख ने बंद पर ‘चुप्पी’ को लेकर विपक्षी नेताओं से सवाल किया। उन्होंने सत्ता में आने पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के कांग्रेस के वादे का भी मजाक बनाया।
भाजपा के सहयोगी दल लोजपा के प्रमुख पासवान ने कानून को लेकर फैल रही भ्रांतियों के खात्मे की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले ने कानून को कुछ नरम बना दिया था, जिसमें संसद ने संशोधन कर उसके पुराने रूप में बहाल किया।
पासवान ने संवाददाताओं से कहा, भारत बंद में सामने भले ही स्थानीय दबदबा रखने वाले संगठन रहे हों। लेकिन किसी राजनीतिक बल की ताकत के बगैर या उनके भड़काए बिना इस स्तर पर भारत बंद संभव नहीं है। हम चाहेंगे कि ऐसी राजनीतिक ताकतें सामने आएं।
यह पूछने पर कि वह किन राजनीतिक ताकतों की बात कर रहे हैं, केन्द्रीय मंत्री ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा,‘‘ मैं जानना चाहूंगा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती का रूख क्या है।’’
उन्होंने कहा, आखिरकार इन दोनों दलों ने विधेयक को लेकर संसद में मोदी सरकार का समर्थन किया था। पहले जब उच्चतम न्यायालय का फैसला आया था तब उन्होंने हम पर दलित-विरोधी होने का आरोप लगाया था।
लोजपा प्रमुख ने कहा, एससी/एसटी कानून के तहत कुल 47 अपराध आते हैं। इनमें से कुछ तो 1989 में ही कानून के तहत आये थे, लेकिन अन्य अपराधों को मोदी के सत्ता में आने के एक साल बाद 2015 में कानून में जोड़ा गया।
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