Wednesday , January 1 2025

फोर्स-2 की टीम दिल्ली के अमर जवान ज्योति क्यों जाना चाहती है ?

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मुबंई। फोर्स-2 की टीम भारत सरकार से चाहती है कि वो देश के लिए न्यौछावर होने वाले उन अनसुने-अनकहे योद्धाओं का सम्मान करे जो खूफिया एजेंसियों में काम करते हैं और काम के समय अपनी पहचान छिपाए रखना उनका मूल मंत्र है। इन अनसुने हीरोज की खास बात यह है कि ये हर क्षण अपने प्राणों को न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं, लेकिन इनका काम ही ऐसा है जो इन्हें छिपे रहने को मजबूर करता है। इन हीरोज की एक छोटी सी जानकारी बड़े-बडें युद्धों को टाल देती है या रोक देती है, लेकिन इनकी कुर्बानियां कभी सामने नहीं आ पाती।
 
फोर्स-2 की टीम ऐसे ही योद्धाओं को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती है। आगामी सप्ताह में फोर्स-2 की टीम दिल्ली स्थित अमर जवान ज्योति के पास जाकर इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेगी। दिल्ली में ही टीम भारत सरकार से अर्जी लगाएगी कि जिसमें इन अनसुने योद्धाओं की कुरबानियों को सामने लाने और इनको पहचान दिलाने की बात होगी।
फोर्स-2 की टीम यह चाहती है कि इन हीरोज का काम और नाम दोनों सामने आए। टीम की आगे की योजना के बारे में बात करें तो वो भारत के राष्ट्रपति के पास भी एक अर्जी भी इसी मसले को लेकर दायर करने वाली है।आपने फोर्स-2 का ट्रेलर देखा ही होगा। जिसे फिल्म मेकर्स ने इन्हीं अनसुने योद्धाओं को अर्पित किया था। किसी ट्रेलर के लॉच होते समय ऐसा पहली बार हुआ कि योद्धाओं की शौर्यता को समर्पित एक स्लाइड ट्रेलर के शुरू में दिखाया गया है।
 
जॉन अब्राहम से यह पूछे जाने पर कि आपकी अर्जी में क्या है तो उन्होंने कहा “ फिल्म की शूटिंग के दौरान जब मैने कैप्टन कालिया की असल कहानी सुनी तो मेरा दिमाग एकदम अचंभित हो गया। उन्हें कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सीमा के पास से पकड़  लिया गया। भारत ने तो शुरू में उन्हें पहचानने तक से इन्कार कर दिया था। उनके पिता अपने बेटे को पहचान दिलाने के लिए दर-दर भटकते रहे। आज भी खुफिया एजेंसियों के ऐसे कई योद्धा हैं जो कही बंद हैं या फिर शहीद हो चुके हैं, फिर भी ना तो उनका कोई नामोंनिशां है और ना ही वजूद। हमारी कहानी ऐसे ही योद्धाओं की सच्ची घटनाओं पर आधारित है, जो फोर्स-2 को ज्यादा विश्वसनीय बनाती है।
जॉन आगे कहते हैं हमारी पूरे समाज से निवेदन है कि देश के लिए कुर्बान होने वाले ऐसे योद्धाओं की पहचान करें और उनका सम्मान करें। यह बहुत ही दुख की बात है कि जो योद्धा अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए क्षण भर भी नहीं सोचता, उसकी शहदात न तो कभी सामने आती है और न ही उसे सम्मान मिल पाता है। हम समझते हैं कि अंडरकवर होकर काम करने वाले योद्धाओं की जानकारी से राजनीतिक से लेकर सुरक्षा को खतरे में डालना होता है। लेकिन हमारी यह प्रार्थना है कि जिन योद्धाओं के केस लंबे समय लंबित हैं कम से कम उन्हें वह दिया जाए जिसके वे वास्तव में वे हकदार हैं। हमारी अर्जी में इन योद्धाओं को उनकी खोई पहचान दिलाना और उन्हें देश का हीरो बताना यही शामिल है।
 
इन बातों से यकीन रखते हुए फिल्म के डायरेक्ट अभिनव देव कहते हैं “ अंडरकवर हो कर काम करते रहने से आपको सामाजिक रुप से पहचान नहीं मिल पाती क्योंकि इस काम का सबसे बड़ा त्याग यही है। लेकिन जब एक बार किसी की भी पहचान काम करने के दौरान सामने आ जाती है तो सरकारें उसे पहचानने तक से इन्कार कर देती हैं। ऐसे में उसकी परिजनों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अपने बेटे को अपना बेटा कहने तक के लिए उन्हें एड़ियां घिसनी होती है। एक सच्चे देशवासी होने के नाते हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम ऐसे योद्धाओं और उनके परिवार के साथ खड़े हों। 
 
फिल्म के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह इन सारी बातों से इत्तेफाक रखते है। वो हाल ही में गुलाम कश्मीर में हुए भारतीय सेना के सीमित सैन्य कार्यवाई (सर्जिकल सट्राइकको इन्ही जासूसों की सूचना पर आधारित कार्रवाई की बात करते हुए कहते हैं “ जब एक बार ये जासूस पकड़े जाते हैं तो इनकी खुद की सरकार इन्हें अपना मानने से इन्कार कर देंती है। इनका खुद का परिवार अथाह पीड़ा सहन करता है। हमें इन्हें इनकी पहचान दिलाने के लिए वास्तव में मिलकर कुछ करना होगा। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उनके कार्य की खुशियां मनाने का मौका भले ही ना दें लेकिन उनका सम्मान तो बनता 



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