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बच्चों की शिक्षा-सुरक्षा के लिए बदलेगा कानून

chaildलखनऊ। जूनियर कक्षाओं में विद्यार्थियों का उत्पीडऩ और ड्रॉप आउट रोकने की कवायद शुरू हो गई है। जूनियर एवं सेकेंड्री कक्षाओं के संचालन के लिए मान्यता से पहले छात्र सुरक्षा के प्रावधान को सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा। इसके लिए शिक्षा का अधिकार कानून में बदलाव की तैयारी हो रही है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्यि स्तर पर बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग से सुझाव मांगे हैं। कमजोर छात्रों को अन्य विद्यार्थियों के समकक्ष लाने के लिए नो डिटेंसन नीति में भी बदलाव होगा। प्रदेश सरकार प्री स्कूय एजुकेशन के लिए आंगनवाड़ी और शिक्षकों को प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराएगी।
प्राइवेट और सरकारी स्कूलों को छात्र सुरक्षा कानून के दायरे में लाने के लिए आरटीई में बदलाव किया किया जा रहा है। सात से लेकर चौदह वर्ष के विद्यार्थियों के पढ़ाई छोडऩे से चिंतित सरकार ने शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव का खाका तैयार किया है। इसमें प्रदेश के बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग की भी रायशुमारी की गई है। प्रदेश में जूनियर कक्षाओं में छात्रों के साथ होने वाले उत्पीाडऩ को
रोकने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय निगरानी का कार्य करेगा। दूरदराज के क्षेत्रों में चार एवं पांच वर्ष के बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए प्री- स्कूल एजुकेशन को बढ़ावा देने की योजना है। इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवेलपमेंट प्रोग्राम संचालित किया जाएगा। यह कार्यक्रम घर-घर जाकर स्थानीय भाषा में आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम को लागू करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग भी दी जाएगी। राज्य सरकार स्तर पर ही शिक्षकों का कैडर बनाकर सर्विस ट्रेनिंग दी जाएगी। जूनियर कक्षाओं में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को शारीरिक दंड, उत्पीडऩ एवं खेलकूद आदि में सुरक्षा सुनिश्चित कराने
का प्रावधान होगा। निर्धारित मानकों के पूरा होने पर ही विद्यालय को रजिस्ट्ऱेशन और मान्यता आदि प्रदान की जाएगी। साथ ही प्रधानाचार्यों और शिक्षकों की ट्रेनिंग और रिफ्रेशर कोर्स के दौरान इन प्रावधानों की जानकारी भी उपलब्ध कराई जाएगी। बाल अधिकारों के
लिए आनलाइन सेल्फ लर्निंग प्रोग्राम शुरू किए जाएंगे। किशोर विद्यार्थियों में उम्र के साथ हो रहे बदलाव के मद्देनजर काउंसलर उपलब्ध कराए जाएंगे। जिससे माता-पिता एवं शिक्षक विद्यार्थी की भावना को समझ सकें। काउंसलिंग की जिम्मेगदारी विद्यालयों को सुनिश्चित करानी होगी। नियमों के उल्लंघन में सख्त कार्यवाही का प्रावधान भी होगा।
बच्चों को स्कूली शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए प्रदेश स्तन पर स्थानीय भाषा और संस्कृति पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा। केंद्र सरकार ने शिक्षा के गिरते स्तर का मुख्य कारण नो डिटेंसन नीति को माना है। इस नीति के कारण छात्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। इसी कारण नो डिटेंसन नीति को कक्षा पांच तक सीमिति करने का फैसला लिया गया है। कक्षा छह से कमजोर विद्यार्थियों को अन्य बच्चों के समकक्ष लाकर ही अगली कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा। सत्र 2017 में नई शिक्षा प्रणाली लागू कर दी जाएगी।

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